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Old 09-04-2013, 11:26 PM   #35
rajnish manga
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Default Re: इधर-उधर से

चलता फिरता फ़रिश्ता
(लेखक: यशपाल जैन)

यह उन दिनों की बात है जब चंपारण में किसानों का आन्दोलन चल रहा था. गांधी जी की उस सेना में सभी प्रकार के सैनिक थे. जिनमे आत्मिक बल ता वे उस लड़ाई में शामिल हो सकते थे, सत्याग्रहियों में कुष्ठ रोग से पीड़ित एक खेतिहर मजदूर भी था. उसके शरीर में घाव थे. वह उन पर कपड़ा लपेट कर चलता था.

एक दिन शाम को सत्याग्रही अपनी छावनी को लौट रहे थे. पर बिचारे कुष्ठी से चला नहीं जाता था.उसके पैरों पर बंधे कपड़े कहीं गिर गए थे. घावों से खून बह रहा था. सब लोग आश्रम में पहूँच गए. बस, एक वही व्यक्ति रह गया.

प्रार्थना का समय हुआ. गाँधी जी ने निगाह उठा कर अपने चारों ओर बैठे सत्याग्रहियों को देखा, पर उन्हें वह महारोगी दिखाई नहीं दिया. उन्होंने पूछताछ की तो पता चला कि लौटते में वह पिछड़ गया था.

यह सुन कर गाँधी जी तत्काल उठ खड़े हुए और हाथ में बत्ती लेकर उसकी तलाश में निकल पड़े. चलते चलते उन्होंने देखा कि रास्ते में एक पेड़ के नीचे एक आदमी बैठा है. दूर से ही गाँधी जी को पहचान कर वह चिल्लाया, “बापू!”

उसके पास जा कर गाँधी जी ने बड़ी व्यथा से कहा, “अरे भाई, तुमसे चला नहीं जाता था तो मुझसे क्यों नहीं कहा?”

तभी उनका ध्यान उसके पैरों की ओर गया. वे खून से लथ-पथ थे. गाँधी जी ने झट अपनी चादर को फाड़ कर उसके पेरों पर कपड़ा लपेट दिया और उसे सहारा दे कर धीरे-धीरे आश्रम में ले आये, उसके पैर धोये और फिर प्यार से अपने पास बिठा कर उन्होंने प्रार्थना की.

अपने धर्म ग्रंथों में हम फरिश्तों की काहानियाँ पढ़ते हैं, जो संकट में फंसे लोगों की सहायता के लिए दोड़े चले आते थे. इससे बढ़ कर हमारा सौभाग्य और क्या हो सकता है कि एक चलता फिरता फ़रिश्ता वर्षों तक हमारे बीच रहा.
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Last edited by rajnish manga; 09-04-2013 at 11:41 PM.
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