10-04-2013, 11:52 PM
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#39
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Re: इधर-उधर से
*सबसे पहले दो शेर आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं:
ऐ तायिरे लाहूती उस रिज़्क से मौत अच्छी
जिस रिज़्क से आती हो परवाज़ में कोताही.
(शायर: इक़बाल)
अच्छा है दिल के पास रहे पासबाने अक्ल
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
(शायर: इक़बाल)
*
आज़ादी से पहले की बात है, शराब की दुकानों के बाहर महिलाओं द्वारा धरना दिया जाता था. उन्हीं दिनों पंजाब के एक आर्य समाजी कार्यकर्ता लाला चिरंजी लाल ने एक गीत शराब-बंदी के बारे में लिखा था:
“छड शराब भन प्याले नूं,
लाख लानत पीने वाले नूं.”
दूसरी ओर शराबी गाते थे:
“पी शराब फड़ प्याले नूं,
की पता चिरंजी लाले नूं.”
और आखिर शराबियों ने पंडित चिरंजी लाल को शहीद बना कर ही छोड़ा.
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