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प्रेम, प्रणय और धोखा
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07-12-2010, 11:22 PM
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48
jai_bhardwaj
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
गुडहल को अब छोड़ के,लो गुलाब की बास
मोह न
कर संसार से , जा
मोहन
के पास
प्रीतम का ख़त पाय के दुःख तुरंत हट जाय
बांचति बैठे ओट में , छाती आँख लगाय
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।
कभी कभी -->
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Last edited by jai_bhardwaj; 07-12-2010 at
11:26 PM
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jai_bhardwaj
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