Re: "सूबेदार बग्गा सिंह" - कमलेश बख्शी
कितने प्यार से बिटिया को बुलाते थे मोरनी। दोनों बाहों पर चुन्नी डाल मोर की तरह नाचती रहती। पोते का नाम बापू ने रखा तू सूबेदार ही रह गया, पोते का नाम करनैल अभी से रख देता हूँ आज बेटा कर्नल है। सतवंत को नाम पसंद नहीं आया था ससुर के सामने कुछ बोल न सकी थी।
बाद में ताने दिए हँसी भी खूब अच्छी तरह याद है उसे, उन दिनों छुट्टी पर गया था। सतवंत मोरनी को गोद में लिए बैठी थी। बापू ने पोते का करनैल नाम उसी दिन रखा था तुम्हारे घर में अजीब रिवाज है तुम गोरे चिट्ठे थे, नाम रख दिया बग्गा (सफ़ेद), पोता कर्नल बने या नहीं, नाम रख दिया करनैल दूसरे दिन मुझे ड्यूटी ज्वाइन करने के लिए गाँव छोड़ना था। बहुत खिलखिला रही थी। फिर उदास हो गई। फिर रोने लगी थी।
उसकी आँखें भर आईं। उसने झट से पोंछ लिया था। कोई उसके बहुत निकट आ गया था। उसकी समस्या सुन सुलझा, आगे बढ़ा। टोली के पेड़ के नीचे हँसती बैठी सतवंत बार-बार आँखों में आ रही थी।
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