Re: "सूबेदार बग्गा सिंह" - कमलेश बख्शी
अपने को झटका। खुश हो सूबेदार बग्गा सिंह! बहू और पोता आ रहे हैं, काश सतवंत भी आ रही होती। सबके लिए कुछ लूँ। करनैल क्या सोचेगा, पूछेगा नहीं? चाचा, आप हम पर इतने मेहरबान क्यों हैं जी! बिल्कुल अपने दादा की तरह बात करता है।
अब देखूँगा, मेरा पोता कैसा है। पेन्शन के पैसे जमा पड़े हैं। उसका खर्च ही क्या है। कई बार सोचा, पैसा भेज दूँ। फिर सोचा, लापता ही चला जाऊँ तो अच्छा। मरने के बाद भेजने को कह दूँगा फिर लगा, क्यों भूली-बिसरी यादों को ताज़ा कर सतवंत को दुख पहुँचाऊँ। मैं जीवित रहा, अब मेरा फिर भोग होगा! लोग अफ़सोस करने आएँगे, सतवंत फिर टूटेगी, ऐसा कुछ नहीं करूँगा, जो बचेगा, अस्पताल के नाम ही छोड़ दूँगा
यह मौका अच्छा है। करनैल से कहूँगा, दो दिन मेरे साथ रहो। सब दे दूँगा।
दूसरे दिन उसने करनैल से कह दिया, बेटा, मेरा तो कोई नहीं, तुमसे बहुत प्यार हो गया। बेटा, बहू, पोता, पोती का थोड़ा-सा सुख मुझे उठा लेने दो। मेरे पास रहो सभी।
ठीक है चाचा, आपके पास ही रहेंगे। आपको चाचा न कह बापू कहना चाहिए, मैं तो बापू ही कहूँगा।
कहो बेटा...
आनेवाले ही हैं बच्चे, सीधे आपके पास आएँगे। आपने नहीं बताया, किस युद्ध में अपंग हो गए।
याद ही नहीं, यह देह बची तो यहाँ का मोर्चा सँभाल लिया।
उसका परिवार आएगा। उसकी व्हील चेअर को पंख लग गए। चोपड़ा के पास जा ख़रीद का ज़िक्र किया। उसने सुझाया, यह काम मुझे मालूम है, तुझे करनैल से बहुत प्यार हो गया है।
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