Re: 'मछलीमार' - कहानी - प्रत्यक्षा
मैं बंसी पानी में डालता, एकटक पानी में हिलती तरंग को देखता। पर रैना का चेहरा मुझे कभी नहीं दिखता। यही तो मैं चाहता था कि रैना का चेहरा मुझे कभी न दिखे। आज आईस बकेट का बर्फ़ पिघल गया था। न जाने क्यों। बीयर का हर घूँट सुसुम था। जीभ पर एक भोथर स्वाद। मुँह में खूब घुमा-फिराकर पी रहा था जैसे कोई वाईन टेस्टर। डीजे आज दूसरे छोर पर था। हमने अपनी सरहदें साफ़ खींचीं थीं। उसमें कोई दुराव, कोई बनावट नहीं था। कोई फॉर्मैलिटी नहीं थी। डीजे से मैं डॉ. सर्राफ के क्लिनिक में पहली बार मिला था। डीजे यानि देवेन जाजू। गोरा, लंबा, कनपटी पर लंबे बाल, ज़रा-सी ज़्यादा नुकीली नाक, ज़रा से ज़्यादा पतले होंठ। खूबसूरत होने से इंच भर पहले की दूरी पर। क्लिनिक में मैं अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था। बस बैठे-बैठे लगा कि आज नहीं, किसी और दिन। डीजे हाँफता हुआ अंदर आया था। रिसेप्शनिस्ट से बहस कर रहा था तुरंत डाक्टर से मिलने को। बड़ी अजीब बेचैन आवाज़ थी। जैसे समंदर के विशाल थपेड़े को टूटने से सँभाला हुआ हो। मैं उठ खड़ा हुआ था।
-ही कैन अवेल माई टाईम
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