Re: 'मछलीमार' - कहानी - प्रत्यक्षा
छाती का बोझ अचानक हल्का हो गया जैसे। होश सतह पर आना ही चाहता था। इस उमगते हुए भाव को सहेजते हुए डीजे की तरफ़ देख कर मुसकुरा दिया। उसकी आँखें अब भी उदास थीं, ठहरी हुई। कोई जवाबी मुस्कुराहट का जिम्मा उसने नहीं लिया।
डीजे की कहानी मुझे नहीं पता थी। जब डॉ. सर्राफ ने कहा था, गो फिशिंग, तब ऐसे ही बिना वजह डीजे का ख़याल आया था। हमारे अपॉयंटमेंट्स एक के बाद एक होते और आते-जाते हम मिल लेते। क्लिनिक के कैंटीन में कभी अकेलेपन से डरे हम दोनों ने साथ-साथ कॉफी पीकर वापस घर जाने के समय को टाला था। मुझे सिर्फ़ इतना पता था कि हम दोनों अपने यथार्थ को सँभाल न सकने की स्थिति में साइकियाट्रिक ट्रीटमेंट ले रहे थे। दो छिन्न-भिन्न पुरुष। और अब इस दूरदराज़ इलाके में इस फार्महाउस में हम दो थे और बूढा और बुढ़िया, यहाँ के केयरटेकर्स।
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