Re: !! गीत सुधियोँ के !!
तुम्हारी चोट सेमेरा दरकना लाज़मी तो नहीं,
मगरकुछ बातें मेरे इख्तियार में भी नहीं,
मुझे बार-बार तोड़ना, फिर जोड़ना,
प्रिय शगल है तुम्हारा, स्वामित्व का बोध कराता है|
तुम सिर्फ मेरी हो पुख्ता अहसास दिलाता है,
मैं तुम्हें खुश होने देती हूँ,
इसलिए नहीं, कि मैं निर्बल हूँ,
इसलिए! क्योंकि,
मैं टूटी तो तुम बिखर जाओगे,
ख़ुद को अपने चारों ओर पाओगे,
समेट सकती हूँ मैं तुम्हें,
लेकिन तुम्हारे हर टुकड़े में दंभ चस्पा है
जिसमें गोंद भी तो नहीं होती है|
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