Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
दुर्योधन का वज्र सा शरीर
महाभारत का युद्ध समाप्ति की ओर अग्रसर था. कर्ण भी युद्ध में मारा जा चुका था. धृतराष्ट्र के पुत्रों में सबसे बड़े और बलशाली दुर्योधन को उसकी माँ गांधारी ने अपने कक्ष में बुलाया और कहा कि आज मैं तुम्हारे सारे शरीर को वज्र के समान कठोर तथा अजेय बना दूँगी. मैं आज अपनी आँखों की पट्टी खोलूंगी. तुम जाओ और मेरे सम्मुख बिना वस्त्रों के आओ. माँ की आज्ञा सुन कर दुर्योधन उनके कक्ष से बाहर निकला. रास्ते में कृष्ण मिल गए. उन्हें सारी घटना का पता चल चुका था. उन्होंने दुर्योधन को सलाह दी कि तुम अवश्य अपनी माँ की आज्ञा का पालन करो लेकिन सोचो कि तुम अपनी माता के सामने नग्न हो कर कैसे जाओगे? ऐसा उपाय करो जिससे तुम्हारी माता की इच्छा भी पूरी हो जाये और तुम्हारी लज्जा भी रह जाए. दुर्योधन ने पूछा कि वह क्या करे? श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया कि तुम अपनी जंघा क्षेत्र में केले का पत्ता लपेट कर जा सकते हो. दुर्योधन ने ऐसा ही किया. वस्त्रहीन दुर्योधन, जो कि जंघा क्षेत्र पर केले का एक पत्ता लपेटे हुए था, जब माँ के सम्मुख पहुंचा तो माँ ने अपनी आँखों की पट्टी खोल दी. उसकी आँखों से उसका तेज निकल रहा था. शरीर के जितने भाग पर माँ की दृष्टि पड़ी, वह वज्र के समान कठोर हो गया. लेकिन जहाँ दुर्योधन ने केले का पत्ता लपेट रखा था शरीर का वह स्थान पूर्ववत माँसल व कोमल बना रहा. माँ के पूछने पर दुर्योधन ने श्रीकृष्ण द्वारा दी गई सलाह के बारे में बता दिया. किन्तु अब क्या हो सकता था ? गांधारी ने अपनी आँखों पर फिर से पट्टी बाँध ली. पाठकगण देखेंगे कि महाभारत के युद्ध में भीम ने श्रीकृष्ण की सलाह पर दुर्योधन के साथ भीषण गदा युद्ध किया और अन्ततः श्रीकृष्ण के कहने पर (गदा युद्ध के नियमों के विरुद्ध जा कर) उसकी जंघा प्रदेश पर ही गदा का भयानक वार किया. जंघाओं के कोमल रह जाने के कारण दुर्योधन इस घाव को सहन न कर पाया और अन्ततः मृत्यु को प्राप्त हुआ.
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