Re: ~!!चन्द्रकान्ता!!~
अन्त में क्रूरसिंह ने कहा, ‘‘हम तुम दोनों पर लानत है अगर इतनी सजा पाने पर भी वीरेन्द्र को गिरफ्तार न किया।’’
नाजिम ने कहा, ‘‘इसमें तो कोई शक नहीं कि वीरेन्द्र अब रोज महल में आया करेगा क्योंकि इसी वास्ते वह अपना डेरा सरहद पार ले आया है, मगर अब कोई काम करने का हौसला नहीं पड़ता, कहीं फिर मैं देखूं और खबर करने पर वह दुबारा निकल जाय तो अबकी जरूर ही जान से मारा जाऊंगा।’’
क्रूरसिंह ने कहा, ‘‘तब तो कोई ऐसी तरकीब करनी चाहिए जिससे जान भी बचे और वीरेन्द्रसिंह को अपनी आंखों से महाराज जयसिंह महल में देख भी लें।’’
बहुत देर सोचने के बाद नाजिम ने कहा, ‘‘चुनारगढ़ महाराज शिवदत्तसिंह के दरबार में एक पण्डित जगन्नाथ नामी ज्योतिषी हैं जो रमल भी बहुत अच्छा जानते हैं। उनके रमल फेंकने में इतनी तेजी है कि जब चाहो पूछ लो कि फलां आदमी इस समय कहां है, क्या कर रहा है या कैसे पकड़ा जायेगा ? वह फौरन बतला देते हैं। उनको अगर मिलाया जाये और वे यहाँ आकर और कुछ दिन रहकर तुम्हारी मदद करें तो सब काम ठीक हो जाय। चुनारगढ़ यहाँ से बहुत दूर भी नहीं है, कुल तेईस कोस है, चलो हम तुम चलें और जिस तरह बन पड़े उन्हें ले आवें।’’
आखिर क्रूरसिंह ने बहुत कुछ जवाहरात अपने कमर में बांध दो तेज घोड़े मंगवा नाजिम के साथ सवार हो उसी समय चुनार की तरफ रवाना हो गया और घर में सबसे कह गया कि अगर महाराज के यहाँ से कोई आये तो कह देना कि क्रूरसिंह बहुत बीमार हैं।
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