View Single Post
Old 25-04-2013, 11:05 AM   #11
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 42
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: सुन्दरकाण्ड

निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥1॥

भावार्थ:-समुद्र में एक राक्षसी रहती थी। वह माया करके आकाश में उड़ते हुए पक्षियों को पकड़ लेती थी। आकाश में जो जीव-जंतु उड़ा करते थे, वह जल में उनकी परछाईं देखकर॥1॥


गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई॥
सोइ छल हनूमान्* कहँ कीन्हा। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा॥2॥

भावार्थ:-उस परछाईं को पकड़ लेती थी, जिससे वे उड़ नहीं सकते थे (और जल में गिर पड़ते थे) इस प्रकार वह सदा आकाश में उड़ने वाले जीवों को खाया करती थी। उसने वही छल हनुमान्*जी से भी किया। हनुमान्*जी ने तुरंत ही उसका कपट पहचान लिया॥2॥



ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥
तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥3॥

भावार्थ:-पवनपुत्र धीरबुद्धि वीर श्री हनुमान्*जी उसको मारकर समुद्र के पार गए। वहाँ जाकर उन्होंने वन की शोभा देखी। मधु (पुष्प रस) के लोभ से भौंरे गुंजार कर रहे थे॥3॥

नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए॥
सैल बिसाल देखि एक आगें। ता पर धाइ चढ़ेउ भय त्यागें॥4॥

भावार्थ:-अनेकों प्रकार के वृक्ष फल-फूल से शोभित हैं। पक्षी और पशुओं के समूह को देखकर तो वे मन में (बहुत ही) प्रसन्न हुए। सामने एक विशाल पर्वत देखकर हनुमान्*जी भय त्यागकर उस पर दौड़कर जा चढ़े॥4॥


उमा न कछु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई॥
गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥5॥

भावार्थ:-(शिवजी कहते हैं-) हे उमा! इसमें वानर हनुमान्* की कुछ बड़ाई नहीं है। यह प्रभु का प्रताप है, जो काल को भी खा जाता है। पर्वत पर चढ़कर उन्होंने लंका देखी। बहुत ही बड़ा किला है, कुछ कहा नहीं जाता॥5॥



* अति उतंग जलनिधि चहुँ पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥

भावार्थ:-वह अत्यंत ऊँचा है, उसके चारों ओर समुद्र है। सोने के परकोटे (चहारदीवारी) का परम प्रकाश हो रहा है॥6॥
__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote