Re: प्रेरक प्रसंग
एक युवा धनुर्धर ने अपने गुरु से धनुर्विद्या सीखी और जल्दी ही वह बहुत अच्छा निशाना लगाने लगा। तीर चलाने में वह इतना निपुण हो गया था कि अपने साथी से पूछता था कि बोलो कहां निशाना लगाना है। साथी बताते कि फलां पेड़ या फलां फल को गिराकर बताओ और वह धनुर्धर तुरंत ही वैसा करके दिखा देता।
अपनी इस विधा पर धनुर्धर फूला नहीं समा रहा था। सफलता सर चढ़कर बोलने लगी। अब वह कहने लगा कि वह गुरुजी से बढ़िया धनुर्धर हो गया है। गुरुजी को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कुछ भी नहीं कहा।
एक बार गुरुजी को किसी काम से दूसरे गांव जाना था। उन्होंने अपने इसी शिष्य को बुलाया और साथ चलने को कहा। गुरु-शिष्य दोनों जब रास्ते से चले तो बीच में एक जगह खाई दिखी। गुरु ने देखा, खाई में एक तरफ से दूसरी तरफ जाने के लिए एक पेड़ के तने का पुल बना हुआ है। गुरु उस पेड़ के तने पर पैर रखते हुए आगे बढ़े और पुल के बीच में पहुंच गए।
वहां पहुंचकर उन्होंने शिष्य की तरफ देखा और पूछा कि बताओ कहां निशाना लगाना है। शिष्य ने कहा कि वो जो सामने पतला-सा पेड़ दिख रहा है उसके तने पर निशाना साधिए। गुरु ने तत्काल निशाना लगाकर बता दिया। गुरु सरपट पुल से इस तरफ आ गए।
इसके बाद उन्होंने शिष्य से ऐसा करके दिखाने को कहा। शिष्य ने जैसे ही पुल पर पैर रखा, वह घबरा गया। पुल पर अपना वजन संभालकर आगे बढ़ना मुश्किल काम था। शिष्य जैसे-तैसे पुल के बीच में पहुंचा। गुरु ने कहा- तुम भी उसी पेड़ के तने पर निशान साधकर बताओ।
शिष्य ने जैसे ही धनुष उठाया, संतुलन बिगड़ने लगा और वह तीर ही नहीं चला पाया। वह चिल्लाने लगा- गुरुजी बचाइए। वरना मैं खाई में गिर जाऊंगा। गुरुजी पुल पर गए और शिष्य को इस तरफ उतार लाए। दोनों ने यहां से चुपचाप गांव तक का सफर तय किया। शिष्य के समझ में बात आ गई थी कि उसे अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है। इसलिए कभी अपनी श्रेष्ठता का घमंड नहीं करना चाहिए।
सारांश :
ज्ञान प्राप्ति की कोई सीमा नहीं है। कितना भी सीख लिया जाए, कम है। अतः अपने ज्ञान पर इतराना नहीं चाहिए।
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