Re: इधर-उधर से
राजस्थानी लोक कथा
ईमानदार डकैत
यह उस ज़माने की बात है जब बलजी-भुर्जी के नाम से राजस्थान का ज़र्रा ज़र्रा खौफ खाता था. बलजी-भुर्जी का गिरोह डकैती के लिए जितना कुख्यात था, उससे कहीं ज्यादा अपने नियमों के लिए जाना जाता था. बलजी भुर्जी की इस धाक को देख कर एक अन्य डकैत नानिया के मन में उससे फ़ायदा उठाने की इच्छा पैदा हुयी. वह जब तब किसी असहाय को लूट लेता और खुद को बलजी बताता. भय से लोग चुप रह जाते ... पर चौंकते अवश्य कि आखिर बलजी भुर्जी की मति को क्या हो गया है !
सेठ खेतसीदास पौद्दार बेहद सज्जन और दयालु प्रवृत्ति के इंसान थे. इधर एक बढ़िया नस्ल का ऊंट सेठ जी खरीद कर लाये थे. एक दिन सेठ जी अकेले ही ऊँट की सवारी कर रहे थे. सर्दी के सिहरन भरे दिनों में एक गरीब बूढ़े को देख कर जो उनसे रुकने की प्रार्थना कर रहा था सेठ जी रूक गए.
सेठ जी ने ऊँट को बैठने का संकेत किया. उन्होंने उस व्यक्ति को भी ऊँट पर बिठा लिया. कुछ दूर ही आगे चले होंगे कि सेठ जी को जोर का धक्का लगा और वे जमीन पर आ गिरे. क्षण भर को सेठ जी चौंके लेकिन यह देख कर उन्हें हैरानी और डर भी लगा कि जिसे उन्होंने दया कर के अपने साथ बिठाया था वह एक डाकू था. अब वे क्या करते. उन्होंने स्वर का नाम पूछा तो उसने कहा कि वह बालजी-भुर्जी का आदमी है. सेठ जी ने उस व्यक्ति से प्रार्थना की कि वह इस घटना का ज़िक्र किसी से न करे वरना लोग किसी पर भरोसा नहीं करेंगे और गरीबों की मदद के लिए आगे नहीं आयेंगे.
बात को दबाये रकने की कोशिश सेठ जी ने तो बहुत की लेकिन किसी प्रकार इस घटना की जानकारी बालजी-भुर्जी को लग गई कि सेठ जी का ऊँट नानिया रूंगा के पास है.
धीरे धीरे सेठ जी के दिमाग़ से यह घटना निकल गई. पर एक रोज वह चौंक गए. घर के दालान में ऊँट बंधा दिखाई दिया, वही ऊँट जिसे डाकू ले गया था. पास जा कर देखा तो उसके गले में एक तख्ती बढ़ी थी और लिखा हुआ था,
“सेठ खेतसी दास को बलजी-भूरजी की भेंट .. हम डाकू हैं पर धोखेबाज कतई नहीं!”
चौंकाने वाली बात तो यह थी कि जो आदमी ऊँट ले गया था वह बालजी भूरजी का आदमी नहीं था. सेठ जी इसी सोच में डूबे थे कि किसी ने बताया,
“झूंझनू के के पास की पहाड़ी की तलहटी में नानिया रूंगा की लाश पड़ी है!”
सभी समझ गए कि असली डकैत कौन था.
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