महात्मा गांधी के विचार :: भारतीय गाँव
सच्चा भारत उसके 7 लाख गांवों में बसता है। यदि भारतीय सभ्यता को एक स्थायी विश्व व्यवस्था के निर्माण में अपना पूर-पूरा योगदान करना है तो गांवों में बसने वाली इस विशाल जनसंख्या को फिर से जीना सिखाना होगा।
आज हमारे गांव जिन तीन बीमारियों के चंगुल में हैं, वे हैं : (1) सामूहिक स्वच्छता का अभाव, (2) अपर्याप्त आहार, (3) जडता...। ग्रामवासियों को स्वयं अपने कल्याण में रुचि नहीं है। वे सफाई के आधुनिक तरीकों की खूबियां नहीं देख पाते। वे अपने खेतों को जोतने या अरसे से चले आ रहे मेहनत के कामों के अलावा कोई और काम करना नहीं चाहते। यह कठिनाइयां वास्तविक और गंभीर हैं। लेकिन हमें इनसे घबराना नहीं चाहिए।
हमें अपने ध्येय में अदम्य आस्था होनी चाहिए। हमें लोगों के साथ धीरज से पेश आना चाहिए। अभी हम स्वयं ही ग्राम-कार्य में नौसिखिये हैं। हमें पुरानी बीमारियों का इलाज करना है। अगर हममें धैर्य और अध्यवसाय होगा तो हम बडी-से-बडी कठिनाइयों को पार कर सकेंगे। हम उन परिचारिकाओं की तरह से हैं जिन्हें अपने रोगियों को इसलिए छोडकर नहीं चले जाना चाहिए कि वे असाध्य रोगों से ग्रस्त हैं ।
गांव बहुत लम्बे समय से उन लोगों की उपेक्षा के शिकार रहे हैं जो शिक्षित हैं। शिक्षित लोग शहरों में जा बसे हैं। ग्राम आंदोलन गांवों के साथ स्वस्थ संपर्क स्थापित करने का एक प्रयास है जिसके लिए उन लोगों को गांवों में जाकर बसने के लिए प्रेरित करना है जिनमें सेवा की उत्कट भावना है और जो ग्रामवासियों की सेवा में आत्माभिव्यक्ति का सुख अनुभव करते हैं...।
जो लोग सेवा की भावना से गांवों में जाकर बस गए हैं, वे अपने सामने आने वाली कठिनाइयों से घबराये नहीं हैं। वे वहां जाने से पहले ही जानते थे कि उन्हें ग्रामीण भाइयों की रुखाई सहित अनेक कठिनाइयों का सामना करना पडेगा। इसलिए गांवों की सेवा वही लोग कर सकेंगे जिन्हें अपने में और अपने ध्येय में आस्था है।