Re: !! कुछ गजलें !!
हर बयानी खलिशे-खार की तरह बयां होती
खल्वत मे सफे-मिज़गा के मोअजे -शरोदगी है खोलती
हनोज़ न मिल सका जवाब उन आँखों को
मेरी रुकाशी मे न जाने कैसे -कैसे मुज़मर के साथ है डोलती
मुश्ताक है सारी बातों को जानने के लिए
हर नाश-औ-नुमा बात के शर-हे को जिबस हे तोलती
महवे रहती हे दवाम मोअजे-ज़ार की कुल्फत मे
ऐ-'यासिर' खामोश होकर भी ये तेरी ऑंखें हे बोलती
इसमे कुछ फारसी शब्द भी हैं जिनको मै लिख देता हूँ
खार -- कांटे
खल्वत-- तन्हाई
मिज़गा -- जूनून
शर-हे -- मतलब
जिबस -- बहुत ज्यादा
दवाम -- लीन
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."
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