राजा ने तेनाली राम के अनुरोध को मान कर उसे समय प्रदान कर दिया। तेनाली राम ने चरवाहे के पडोसी को बुलाया और उसे मरी बकरी का हर्जाना देने के लिए कहा। पडोसी बोला, “महोदय, इसके लिए मैं दोषी नहीं हूँ। यह दीवार तो मैंने मिस्त्री से बनवाई थी, अतः असली अपराधी तो वह मिस्त्री है, जिसने वह दीवार बनाई। उसने इसे मजबूती से नहीं बनाया। अतः वह गिर गई।”
तेनाली राम ने मिस्त्री को बुलवाया। मिस्त्री ने भी अपने को दोषी मानने से इनकार कर दिया और बोला, “अन्नदाता, मुझे व्यर्थ ही दोषी करार दिया जा रहा है जबकि मेरा इसमें कोई दोष नहीं है। असली दोष तो उन मजदूरों का है, जिन्होंने गारे में अधिक पानी मिलाकर मिश्रण को खराब बनाया, जिससे ईंटें अच्छी तरह से चिपक नहीं सकीं और दीवार गिर गई। आपको हर्जाने के लिए उन्हें बुलाना चाहिए।”
राजा ने मजदूरों को बुलाने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। राजा के सामने आते ही मजदूर बोले, “महाराज, इसके लिए हमें दोषी तो वह पानी वाला व्यक्ति है, जिसने गारे चूने में अधिक पानी मिलाया।”
अब की बार गारे में पानी मिलाने वाले व्यक्ति को बुलाया गया। अपराध सुनते ही वह बोला, “इसमें मेरा कोई दोष नहीं है महाराज, वह बर्तन जिसमें पानी हुआ था, वह बहुत बडा था। जिस कारण उसमें आवश्यकता से अधिक पानी भर गया। अतः पानी मिलाते वक्त मिश्रण में पानी की मात्रा अधिक हो गई। मेरे विचार से आपको उस व्यक्ति को पकडना चाहिए, जिसने पानी भरने के लिए मुझे इतना बडा बर्तन दिया।
तेनाली राम के पूछने पर कि वह बडा बर्तन उसे कहॉ से मिला, उसने बताया कि पानी वाला बडा बर्तन उसे चरवाहे ने दिया था, जिसमें आवश्यकता से अधिक पानी भर गया था|
तब तेनाली राम ने चरवाहे से कहा, “देखो, यह सब तुम्हारा ही दोष है। तुम्हारी एक गलती ने तुम्हारी ही बकरी की जान ले ली।”
चरवाहा लज्जित होकर दरबार से चला गया। परन्तु सभी तेनाली राम के बुद्धिमतापूर्ण न्याय की भूरी-भूरी प्रशंसा कर रहे थे।