Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
एक बार ऋषिवर प्रमति अपने पुत्र रूरू को साथ ले कर महर्षि स्थूलकेश के आश्रम में पधारे. ऋषिपुत्र रूरू प्रमद्वरा को देखते ही उसकी सुन्दरता पर मुग्ध हो गये. रूरू को देख कर प्रमद्वरा की भी ऐसी ही स्थिति हो गयी थी. घृताची पुत्र रूरू एवं मेनका सुता प्रमद्वरा दोनों एक दूसरे के हो गये. रूरू ने अपने सहपाठियों के सहयोग से अपनी मनःस्थिति को अपने पिता प्रमति तक पहुंचा दिया और ऋषिवर प्रमति ने ऋषिवर स्थूलकेश से उनकी पालिता पुत्री का हाथ अपने पुत्र रूरू के लिए मांगा जिसके लिए महर्षि स्थूलकेश प्रसन्नतापूर्वक तुरंत तैयार हो गये. दोनों का विवाह संपन्न हो गया और प्रमद्वरा अपने पिता का आश्रम छोड़ कर अपने पति के आश्रम में आ गई.
दोनों के दिन खुशी खुशी बीतने लगे. लेकिन नियति से यह सब कुछ अधिक दिनों तक देखा नहीं गया. एक दिन जब प्रमद्वरा उपवन में फूल चुन रही थी, उसे एक विषैले सांप ने डस लिया. उसका शरीर नीला पड़ने लगा और वह संज्ञा-हीन हो कर धरती पर गिर पड़ी. इससे पहले कि कोई उपाय किया जा सकता, उसके प्राण पखेरू उड़ गये. अपनी निश्चेष्ट पड़ी पत्नि को देख कर रूरू पछाड़ खा कर गिर पड़ा और जोर जोर से क्रंदन करने लगा.
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