View Single Post
Old 02-06-2013, 10:42 PM   #25
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक

महर्षि स्थूलकेश के आश्रम में आये हुये सभी ऋषियों, मुनियों ने रूरू को सांत्वना दी और जीवन के नश्वर होने का बोध कराया. किन्तु रूरू अपनी प्रिय के अनंत-वियोग से भीतर तक हिल चुका था और इस दारुण दुःख के कारण रोये जा रहा था. रूरू के ह्रदय पर उन महर्षियों के उपदेशों का कोई असर नहीं हो रहा था. उसे तो जीती जागती प्रमद्वरा चाहिए थी. रूरू ने कुपित हो कर घोषित किया,

“काल ! मेरी प्रिय प्रमद्वरा को वापिस करो, अन्यथा मैं शाप दे कर समस्त ब्रह्माण्ड को क्षार कर दूंगा.”

रूरू की अंजुरी में उनके अमर्ष से संकल्प का जल सुलग रहा था और समस्त देवलोक यह सुन कर थरथरा रहा था. तब तक रूरू ने पुनः घोषणा की,

“यदि मैंने भक्तिपूर्वक गुरुजनों की आगया का पालन किया हो, यदि मई निष्ठापूर्वक सच्चरित्र रहा हूँ, यदि मैंने आस्थापूर्वक सदाचार का पालन किया हो, यदि मैंने द्वेषरहित हो कर पूर्ण सौहार्द से प्राणिमात्र के प्रति सद्भाव ही रखा हो, तो मेरी प्रिया जीवित हो कर उठ बैठे.”

शाप का मुकाबला तो एक बार हो सकता है किन्तु सदाचार व् आचरण की चुनौती का मुकाबला करने की सामर्थ्य तो स्वयं महाकाल में भी नहीं थी. यमराज सहित देवतागण स्वर्ग से उतर आये. वे रूरू को समझाने लग गये, “वत्स, प्रमद्वरा की आयु शेष हो चुकी, वह कैसे जीवित की जा सकती है !”
“कुछ भी हो मुझे प्रमद्वरा वापस मिलनी ही चाहिए.” रूरू अपने आग्रह पर अडिग थे. क्रंदन और विलाप के स्थान पर अब उसका आनन संकल्प, चुनौती और अमर्ष से प्रदीप्त हो गया था. यमराज सामने आये,

“यदि कोई उसे अपनी आयु दी तो कुछ हो सकता है.”

“बस इतनी सी बात, यह तो बहुत सरल है. मैं अपनी आधी आयु प्रमद्वारा को देता हूँ.” प्रसन्न वदन रूरू ने संकल्प जल को धरती पर छोड़ दिया. देखते देखते प्रमद्वरा उठ बैठी. उसे ऐसा लगा जैसे गहरी नींद से जागी हो.

इस कालजयी, प्रियाव्रती, पत्नीव्रती रूरू के लिए किसी पुरुष ने व्रत नहीं रखा, किसी ने कोई उपवास नहीं किया, कोई पूजा, अर्चना, उपासना या अनुष्ठान नहीं हुआ. महर्षि अरविंद के एक छोटे से प्रसंग के अतिरिक्त किसी कालिदास या वाल्मीकि ने रूरू के बारे में लिखने की कोशिश नहीं की. क्या ऐसा इसलिए था कि रूरू का सम्बन्ध किसी राज परिवार से नहीं था और वह केवल एक ऋषिपुत्र था?

(कवि-लेखक उमाकांत मालवीय के विवरण से प्रेरित)

Last edited by rajnish manga; 02-06-2013 at 10:45 PM.
rajnish manga is offline   Reply With Quote