Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
कुछ काल उपरान्त देवयानी के पुत्रवती होने पर शर्मिष्ठा ने भी पुत्रोत्पत्ति की कामना से राजा ययाति से प्रणय निवेदन किया
जिसे ययाति ने स्वीकार कर लियाi जब देवयानी को ययाति तथा शर्मिष्ठा के सम्बंध के विषय में पता चला तो वह बहुत क्रोधित
हुईi
इस प्रकार नहुष के पुत्र राजा ययाति के दो पत्नियां हुयीं – एक शर्मिष्ठा और दूसरी देवयानीi शर्मिष्ठा दैत्यकुल के राजा वृषपर्वा की कन्या थी और देवयानी दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य कीi राजा को शर्मिष्ठा से विशेष स्नेह थाi राजा ययाति के देवयानी से दो पुत्र यदु तथा तुवर्सु और शर्मिष्ठा से तीन पुत्र द्रुह्य, अनु तथा पुरु हयेi
देवयानी को उचित सम्मान न पाते देख उसके पुत्र यदु ने उससे कहा कि माता! इस असम्मानजनक जीवन से क्या यह अधिक उचित न होगा कि हम अग्नि में प्रवेश करके यह जीवन समाप्त कर दें? यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगी तो भी मैं यह जीवन धारण नहीं करूँगाi
पुत्र की यह बात सुनकर देवयानी ने सारी बातें अपने पिता भृगुनन्दन शुक्राचार्य को बता दी और स्वयं भी जल मरने को तैयार हो गईi उसने कहा कि ययाति मेरा ही नहीं आपका भी अनादर करती हैंi इससे क्रोधित हो कर शुक्राचार्य ने ययाति को लक्ष्य करके
शाप दिया कि दुरात्मने! तुम्हारी अवस्था जराजीर्ण वृद्ध जैसी हो जायेi तुम बिलकुल शिथिल हो जाओi इस प्रकार शाप दी कर वे मौन हो गयेi इसके बाद ययाति ने गुरु शुक्राचार्य से बहुत अनुनय विनय की तो दैत्य गुरु ने शाप मुक्ति की संभावना से इनकार
करते हए केवल इतना कहा कि यदि तुम्हारा कोई पुत्र अपना यौवन तुम्हें दी सके और बदले में तुम्हारी वृद्धावस्था लेले तो इस शाप का किसी हद तक प्रभाव निलंबित रह सकता हैi
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