Re: एक सफ़र ग़ज़ल के साए में
हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे
(शायर: सागर निज़ामी)
हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे
तुम ने बना दिया है मुहब्बत में क्या मुझे
हर मंज़िल-ए-हयात से गुम कर गया मुझे
मुड़ मुड़ के राह में वो तेरा देखना मुझे
कैसे ख़ुदी ने मौज को कश्ती बना दिया
होश-ए-ख़ुदा है अब न ग़म-ए-नाख़ुदा मुझे
साक़ी बने हुए हैं वो `साग़र' शब-ए-विसाल
इस वक़्त कोई मेरी क़सम देखता मुझे
Last edited by rajnish manga; 14-06-2013 at 11:42 PM.
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