14-06-2013, 11:54 PM
|
#66
|
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241
|
Re: एक सफ़र ग़ज़ल के साए में
हादसे क्या क्या तुम्हारी बेखुदी से हो गये
(शायर: सागर निज़ामी)
हादसे क्या क्या तुम्हारी बेखुदी से हो गये
सारी दुनिया के लिए हम अजनबी से हो गये
गर्दिशे दौरां, ज़माने की नज़र, आँखों की नींद
कितने दुश्मन एक रस्मे दोस्ती से हो गये
कुछ तुम्हारे गेसुओं की बरहमीं ने कर दिया
कुछ अँधेरे मेरे घर में रौशनी से हो गये
यूं तो हम आगाह थे सैयाद की तदबीर से
हम असीर-ए-दामे-गुल अपनी खुदी से हो गये
हर कदम ‘सागर’ नज़र आने लगी हैं मंजिलें
मरहले तय मेरी कुछ आवारगी से हो गये
(गर्दिशे दौरां = समय का उतार चढ़ाव)(गेसू = केश / बरहमी = बिखराव) (आगाह = अवगत होना / सैयाद = शिकारी / तदबीर = योजना / असीर = बंदी / खुदी = अहं) (मरहले = मंज़िले / आवारगी = बिना मकसद के घूमना)
Last edited by rajnish manga; 15-06-2013 at 10:21 AM.
|
|
|