Re: मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी
ये खेत घास और कँटीली झाड़ियों के कारण बर्बाद हो रहे थे। बिना पानी के बाग मुरझा रहे थे। किसानों के पास न तो मवेशी थे और न रोटी। सड़कों पर कतार बाँधे फ़कीर उन लोगों से भीख माँगा करते थे, जो खुद भूख थे।
नए अमीर ने हर गाँव में सिपाहियों की टुकड़ियाँ भेज रखी थीं और गाँववालों को हुक्म दे रखा था कि उन सिपाहियों के खाने-पीने की जिम्मेदारी उन्हीं पर होगी। उसने बहुत-सी मस्जिदों की नींव डाली और फिर गाँववालों से कहा कि वे उन्हें पूरा करें। नया अमीर बहुत ही धार्मिक था। बुखारा के पास ही शेख़ बहाउद्दीन का पवित्र मजार था।
नया अमीर साल में दो बार वहाँ जियारत करने जरूर जाता था। पहले से लगे हुए चार टैक्सों में उसने तीन नए टैक्स और बढ़ा दिए थे। व्यापार पर टैक्स बढ़ा दिया था। का़नूनी टैक्सों में भी वृद्धि कर दी थी। इस तरह उसने ढेर सारी नापाक दौलत जमा कर ली थी। दस्तकारियाँ ख़त्म होती जा रही थीं। व्यापार घटता चला जा रहा था।
मुल्ला नसरुद्दीन की वापसी के समय उसके वतन में बेहद उदासी छाई हुई थी।
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