Re: मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी
मुल्ला नसरुद्दीन ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘आप सही फरमा रहे हैं, मेरे आका। सचमुच यह घोड़ा मेरे जैसों के लिए जरूरत से ज्यादा बढ़िया है। इस फटी खिलअत में मैं जिंदगी भर गधे पर ही चढ़ता रहा हूँ। मैं शानदार घोड़े पर सवारी करने की हिम्मत ही नहीं कर सकता।’
‘यह ठीक है कि तुम ग़रीब हो। लेकिन घमंड ने तुम्हें अंधा नहीं बनाया है। नाचीज़ ग़रीब को विनम्रता ही शोभा देता है, क्योंकि खूबसूरत फूल बादाम के शानदार पेड़ों पर ही अच्छे लगते हैं, मैदान की कटीली झाड़ियों पर नहीं। बताओ, क्या तुम्हें यह थैली चाहिए? इसमें चाँदी के पूरे तीन सौ तंके है।’, अजनबी रईस ने कहा।
मुल्ला नसरुद्दीन चिल्लाया, ‘चाहिए। जरूर चाहिए। चाँदी के तीन सौ तंके लेने से भला कौन इनकार करेगा? अरे, यह तो ऐसे ही हुआ जैसा किसी को थैली सड़क पर पड़ी मिल गई हो।’
अजनबी ने जानकारों की तरह मुस्काराते हुए कहा, ‘लगता है तुम्हें सड़क पर कोई दूसरी चीज मिली है। मैं यह रक़म उस चीज से बदलने को तैयार हूँ,’ जो तुम्हें सड़क पर मिली है। यह लो तीन सौ तंके।’
उसने थैली मुल्ला नसरुद्दीन को सौंप दी और अपने नौकर को इशारा किया। उसके चेचक के दागों से भरे चेहरे की मुस्कान और आँखों के काइयाँफ को देखते ही मुल्ला नसरुद्दीन समझ गया कि यह नौकर भी उतना ही बड़ा मक्कार है, जितना बड़ा मक्कार इसका मालिक है।
एक ही सड़क पर तीन-तीन मक्कारों का एक साथ होना ठीक नहीं है, उसने मन-ही-मन निश्चय किया। इनमें से कम-से-कम एक जरूर ही फालतू है। समय आ गया है कि यहाँ से नौ-दो ग्यारह हो जाऊँ।
अजनबी की उदारता की प्रशंसा करते हुए मुल्ला नसरुद्दीन झपटकर अपने गधे पर सवार हो गया और उसनए इतने जोर से एड़ लगाई कि आलसी होते हुए भी गधा ढुलकी मारने लगा।
थोड़ी दूर जाकर मुल्ला नसरुद्दीन ने मुड़कर देखा। नौकर अरबी घोड़े को गाड़ी से बाँध रहा था। वह तेजी से आगे बढ़ गया।…
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