01-07-2013, 01:54 PM
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Re: विज्ञान दर्शन
स्टेम कोशिकाओं में छिपा मानव कल्याण
मस्तिष्क तथा स्पाइनल कॉर्ड में रोग अथवा चोट के कारण घाव से ग्रसित चूहों के रक्त में मानव अम्बेलिकल कॉर्ड के रक्त से प्राप्त स्टेम कोशिकाओं को मिश्रित करने के बाद यह पाया गया कि ये कोशिकाएँ ऐसे घावों तक पहुँच कर स्नायु तंत्र की नई कोशिकाओं के निर्माण में सहायक हैं तथा इन रोग–ग्रसित चूहों के स्वास्थ्य में कुछ सुधार हुआ है।
अजन्मे मानव–भ्रूण को सुरक्षा कवच प्रदान करने वाले एम्नियॉटिक–द्रव से वैज्ञनिकों ने संभावना युक्त स्टेम कोशिकाओं का पता लगाया है। रक्त से प्राप्त स्टेम सदृश्य कोशिकाओं की सहायता से गंभीर हृदयाघात से पीड़ित चूहों के जैविक क्रिया–कलापों के पुर्नस्थापना में वैज्ञानिकों ने सफलता पाई है। स्टेम कोशिकाओं की सहायता से मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी नामक रोग से ग्रसित चूहों की क़मजोर पड़ती मांसपेशियों को फिर से ठीक करने में वैज्ञानिकों को सफलता मिली।
वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि उम्र के साथ घटती स्टेम कोशिकाओं की संख्या हमारी धमनियों की मरम्मत में गतिरोध उतपन्न करती हैं– जिसके कारण उनमें आर्थेरोस्क्लेरॉसिस होने लगती है। फलत: धमनियों में रक्त के बहाव में बाधा पड़ती है जो अंतत: हृदयाघात का कारण बन सकती है।
भ्रूणीय स्टेम कोशिकाओं के संबंध में चल रहे अनुसंधान के फलस्वरूप वैज्ञानिकों को डायबिटीज़ के कारणों एवं निदान की दिशा में कुछ नए सूत्र हाथ लगने की संभावना है।
चूहे की अस्थिमज्जा की स्टेम कोशिकाएँ अब स्नायुतंत्र की कोशिकाओं में परिवर्तित की जा सकती हैं। वैज्ञानिकों ने पहली बार स्टेम कोशिकाओं से फेफड़े के क्षतिग्रस्त ऊतकों की पुनरोत्पत्ति में सफलता पाई। वैज्ञानिकों ने अब यह समझ लिया है कि मुर्गी के भ्रूणीय विकास के दौरान कान के विकास में संलग्न स्टेम कोशिकाओं को किस प्रकार नियंत्रित किया जा सकता है।
ये चंद सुर्खियाँ हैं— विज्ञान जगत के उस हिस्से से जहाँ वैज्ञानिक हम मनुष्यों के स्वास्थ्य के बारे में चिंतन करते रहते हैं एवं अनुसंधान द्वारा इस बात के लिए प्रयत्नशील रहतें हैं कि किस प्रकार जटिल से जटिल समस्याओं का निदान सफलता पूर्वक किया जा सके तथा वर्तमान तकनीकि को परिमार्जित कर हमारी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को और आसानी से सुलझाया जा सके।
उपरोक्त खबरें दे कर– केवल खबर देना ही इस आलेख का उद्देश्य नहीं है बल्कि यहाँ इरादा है–इन खबरों के पीछे की खबर लेना। अगर आप ध्यान से इन खबरों को पढ़ें तो आप पाएँगे कि इन सब में स्टेम कोशिका एक ऐसा शब्द है जो सब जगह आया है। तो आइए– सबसे पहले हम इसी बात की जाँच–पड़ताल कर लें कि ये स्टेम कोशिकाएँ हैं क्या बला एवं वैज्ञानिक क्यों इनके पीछे पड़े हुए हैं। बाद में इन खबरों और इन जैसी अन्य महत्त्वपूर्ण खबरों की खबर भी ली जाएगी।
इन कोशिकाओं को स्टेम कोशिका का नाम जरूर दिया गया है–परंतु पेड़ के तने से इनका दूर–दूर तक लेना–देना नहीं हैं। ये कोशिकाएँ हमारे–आप के शरीर में–बल्कि यों कहें कि उच्च श्रेणी के सभी जन्तुओं के शरीर में पाई जाती हैं। भ्रूणीय विकास में इनकी भूमिका बड़ी ही महत्वपूर्ण है। इसके साथ – साथ विकसित शरीर में भी विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं के उत्पादन के मूल में यही कोशिकाएँ होती है। इन कोशिकाओं तथा इनके महत्व को समझने के लिए भ्रूणीय विकास की प्रक्रिया का थोड़ा–बहुत ज्ञान आवश्यक है।
भ्रूणीय विकास का प्रारंभ शुक्राणु एवं डिंब के निषेचन से निर्मित युग्मक की उत्पत्ति के साथ ही हो जाता है। युग्मक तुरंत कोशिका विभाजन की प्रक्रिया में संलंग्न हो जाता है और कुछ ही समय में सैकड़ों कोशिकाओं का उत्पादन होता है। इन कोशिकाओं की संरचना तथा कार्यकी में कोई अंतर नही होता। मानव भ्रूण में ये कोशिकाएँ ३ से ५ दिन के अंदर पुनर्व्यवस्थित हो कर एक खोखले गेंद के आकार की ब्लास्टोसिस्ट का निर्माण करती हैं। इस ब्लास्टोसिस्ट में एक स्थान पर लगभग ३० से ३५ कोशिकाओं के एक गुच्छे का निर्माण होता है– जिसे इनर सेल मास कहते हैं। इन कोशिकाओं में भी कोई अंतर नहीं होता है। इन कोशिकाओं को स्टेम कोशिका कहा जा सकता है क्यों कि अब इनके विभाजन के फलस्वरूप सैकड़ों उच्च कोटि की विशिष्ट कोशिकाओं का उत्पादन होता है–जिनकी संरचना एवं कार्यकी में अतंर होता है।
ये विशिष्ट कोशिकाएँ भ्रूणीय विकास के दौरान विभिन्न प्रकार के ऊतकों के निर्माण में सहायक होती हैं। विकासशील भ्रूण के विकसित हो रहे नाना प्रकार के ऊतकों में भी ये स्टेम कोशिकाएँ पाई जाती हैं जो विभाजित हो कर तरह–तरह की विशिष्ट ऊतकीय कोशिकाओं का निर्माण करती हैं, जिनका उपयोग शरीर के विभिन्न अंगों यथा हृदय, फेफड़े, त्वचा आदि या फिर अन्य प्रकार के ऊतकों के निर्माण में होता है।
यही नहीं, वयस्कों के विभिन्न अंगों जैसे अस्थिमज्जा, मांसपेशी, मस्तिष्क एवं अन्य ऊतकों में भी ये स्टेम कोशिकाएँ थोड़ी बहुत मात्रा में पाई जाती हैं। सामान्य अवस्था में ये कोशिकाएँ निष्क्रिय पड़ी रहती हैं परंतु बीमारी अथवा चोट या फिर समय के साथ जीर्णता के कारण जब इन अंगों की ऊतकीय कोशिकाओं का ह्रास होने लगता है, तब ये वयस्क स्टेम कोशिकाएँ हरकत में आती हैं एवं इस अंग विशेष या ऊतक में प्रयुक्त विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं का निर्माण कर क्षतिपूर्ति में सहायक होती हैं। क्यों कि ऊतकीय कोशिकाएँ सामान्यत: कोशिका–विभाजन द्वारा अपने समान नई कोशिकाओं के निर्माण में अक्षम होती हैं।
इन स्टेम कोशिकाओं में तीन विशिष्ट गुण समान रूप से पाए जाते हैं – चाहे ये भ्रूणीय अवस्था की हों अथवा वयस्क शरीर की।
- पहली बात तो यह कि इनकी संरचना एवं कार्यकी किसी भी साधारण कोशिका के समान होती है। ये किसी भी ऊतक विशेष से मेल नही खाते फलत: ऊतकीय कोशिकाओं के समान किसी विशिष्ट कार्य यथा – लाल रूधिर कोशिकाओं के समान ऑक्सीजन ढोने या फिर मांसपेशीय कोशिकाओं के समान शरीर की गतिशीलता बनाए रखने जैसे कार्योंं में ये संलग्न नहीं हो सकतीं। हाँ– आवश्यकता पड़ने पर कोशिका विभाजन द्वारा विशिष्ट प्रकार की ऊतकीय कोशिकाओं को जन्म अवश्य दे सकती हैं।
- दूसरी बात – ये स्टेम कोशिकाएँ सामान्य परिस्थितियों में बार–बार कोशिका विभाजन की प्रक्रिया द्वारा अपने ही समान नई कोशिकाओं के निर्माण की क्षमता रखती हैं। इस प्रक्रिया को प्रॉलीफरेशन कहते हैं। प्रॉलीफरेशन से प्राप्त नई कोशिकाएँ भी यदि किसी ऊतक–विशेष के गुणों से युक्त न हो कर स्टेम कोशिकाओं के समान हों तो ऐसी स्टेम कोशिकाओं को –लंबी अवधि तक स्व नवीनीकरण की क्षमता से युक्त कहा जा सकता है।
- तीसरी बात– आवश्यकता पड़ने पर, परिस्थिति विशेष में, विभेदीकरण (डिफरेंशियेशन) द्वारा ये किसी ऊतक विशेष की कोशिकाओं का निर्माण कर सकती हैं।
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