View Single Post
Old 04-07-2013, 10:16 PM   #106
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: इधर-उधर से

परन्तु, क्या नारी की वर्तमान दशा सिर्फ पुरुषोंकी ही देन है ? जुल्म करने वाले और जुल्म सहने वाले दोनों ही जुल्म करने वालोंकेही हाथ मजबूत करते हैं। और इस तरह दोनों ही दोषीठहरते हैं। किसी भी समस्या का हल उसके मूल को जानकर उसके उन्मूलन में होता है। नारी को आज पुनरुत्थान की आवश्यकताहै। उसकी पंगुता को बैशाखी की जरूरत है, जो है उसका अपना आत्म-सम्मान, आत्मसंबल और जीवन को सही तरीके से जीने की ललक। सामाजिक बंधनरूपी गुलामी की जंजीर नारी का जेवर बन चुका है। उन्हें समझना होगा कि जेवर से शारीरिक सौन्दर्य अवश्य चमक उठे, किन्तु आन्तरिक सौन्दर्य कभी नहीं चमकता। इनसे पृथकता ही उनकी समस्या का हल है।

सर्वेक्षण किया जाए तो पता चलता है कि जितनी भीनिकृष्टपरम्परायें हैं जो नारियों को बंधनयुक्त बनाती हैं, उनकी संरक्षक परिवार की महिलायें ही हैं। एक बारगी पिता विधवा बेटी के मनोभावों को समझकर उसकी शादी की बात सोच भी सकता है, किन्तुबुज़ुर्गमहिलायें इसका विरोध हर प्रकार से करती नजर आती हैं।

"
तूने बेटा नहीं जना, तू कलंकिनी है" ऐसा कहने और ऐसे ही वुएक प्रकार के लाँछनों का ठेका सासों ने ले रखा है, जैसे बहू की इच्छा के अनुसार ही पुत्र अथवा पुत्री का जन्म संभव है। जब गड्ढा खोदने वाली स्त्रियाँ ही हैं तो पुरुषोंका काम आसान हो जाता है। उन्हें धकेल कर उस गड्ढे में गिरा देना। अन्यथा नारी और पुरुषतो एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। उनकी पूर्णता दोनों के योग में है। सीताराम शब्द भले ही दो शब्दों का युग्म हो, किन्तु उनका पृथकीकरण दोनों की महत्ता कम कर देता है। यदि गुलाब को डाली से अलग कर दिया जाय तो गुलाब और डाली की अलग-अलग कल्पना शायद ही की जा सकती है। नारी तो गुलाब है, जिसे देख-देखकर डाली अपनी मंजिल पर पहुँचती है। और पुरुषडाली है, उस प्रेरणा का पूजक और रक्षक। दोनोंको एक दूसरे पर गर्व होता है। दोनों में अनन्योन्याश्रय संबंध होता है।अत: विलग होकर कोई सुखी नहीं रह सकता। यथार्थ में डाली और गुलाब एक दूसरे के पूरक हैं, अन्यथा अर्द्धनारीश्वर की परिकल्पना ही झूठी हो जाएगी।

rajnish manga is offline   Reply With Quote