Re: इधर-उधर से
एक चीनी बोध-कथा
एक जगह पर कुछ पढ़े-लिखे, सभ्य और बुजुर्ग लोग समय समय पर मुलाक़ात किया करते थे, विचार-विनिमय के साथ चायपान करते थे. हर मेज़बान अपनी बारी आने पर अच्छी से अच्छी और महंगी से महंगी चाय का इंतजाम करता था और चाहता था कि मेहमान उसकी चाय पी कर उसकी महक की तारीफ़ करें.
जब उस समूह में परम श्रद्धेय व आदरणीय बुज़ुर्ग की मेहमाननवाजी की बारी आई, उसने बड़े समारोहपूर्वक एक स्वर्ण-मंजूषा से चाय की चुनिन्दा पत्तियाँ निकाल कर चाय तैयार करवाई और उसे मेहमानों को पेश किया. वहां उपस्थित जानकार मेहमानों ने इस बेहद स्वादिष्ट चाय की जमकर तारीफ़ की. इस पर मेज़बान ने मुस्कुरा कर कहा,
“जिस चाय की आप इतनी तारीफ़ कर रहे हैं, यह वास्तव में वही चाय है जो हमारे किसान भाई पीते हैं. मुझे आशा है कि आप सब इस बात को बखूबी समझ गये होंगे कि जीवन में प्राप्त होने वाली सभी बढ़िया वस्तुयें जरूरी नहीं कि नायाब या बेशकीमती हों.
|