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dipu
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आठ साल की उम्र में ट्रिपल मर्डर, नाबालिग लड़के आठ दिन तक करते रहे रेप

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने बालिग होने की उम्र 18 से घटाकर 16 करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने जघन्य अपराधों में शामिल नाबालिगों को कानूनी संरक्षण देने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि जुवेनाइल एक्ट में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है।

कोर्ट ने कहा, ‘हम कानून के प्रावधानों को सही मानते हैं।’ कोर्ट में दायर याचिका का बच्चों के लिए काम करने वाले संगठनों ने विरोध किया था। दिल्ली के बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष आमोद कंठ ने भी इसका विरोध जताया था।

दिल्ली में 16 दिसंबर को चलती बस में एक छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म के बाद कोर्ट में आठ याचिकाएं दायर की गईं थी। छात्रा से दुष्कर्म करने वालों में एक नाबालिग आरोपी भी है वह पीडि़त छात्रा के साथ बेहद क्रूरता से पेश आया था। उसे कठोर सजा दिलाने की मांग चारों तरफ से उठी थी। दायर याचिकाओं में से एक में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून 2000 में किशोर को परिभाषित करने वाले प्रावधान की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। यह प्रावधान कहता है कि 18 साल की आयु पूरी होने तक व्यक्ति नाबालिग माना जाएगा। याचिका में कहा गया था कि इस कानून में संशोधन की आवश्यकता है क्योंकि इसमें किशोर की शारीरिक या मानसिक परिपक्वता का जिक्र नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में बालिग होने की उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल करने की मांग खारिज होने के बीच देश में नाबालिगों के जघन्*य अपराध में शामिल होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। आज नाबालिग अपराधी शातिर से शातिर अपराधियों को मात दे रहे हैं। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि बालिग होने के करीब पहुंचे किशोर जघन्*य अपराधों को सबसे अधिक अंजाम दे रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक किशोरों द्वारा किए जा रहे कुल अपराधों में 64 फीसदी अपराध 16 से 18 साल के किशोर कर रहे हैं। इतना ही नहीं अब किशोरों द्वारा किए जाने वाले अपराध में लड़कियों की भी संख्*या बढ़ती जा रही है। चाइल्*ड इन इंडिया-2012 रिपोर्ट के मुताबिक साल 2005 में ऐसे अपराध में लड़कियों की भागीदारी केवल 0.6 फीसदी थी वहीं साल 2011 में यह हिस्*सेदारी बढ़कर 5.84 फीसदी हो गई। इस बारे में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के वकील अनंत अस्*थाना का कहना है कि दोस्*तों के दबाव, आकर्षक लाइफस्*टाइल और सबसे अधिक माता-पिता की निगरानी में कमी के कारण किशोर अपराध की दुनिया की ओर खींचे जा रहे हैं।
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