तब वहाँ से चल पड़ा। ध्रुव के इस व्यवहार पर चकित हो सुरुचि अपने मन में सोचने लगी, ‘‘लड़का तो भला मालूम होता है ! गालियाँ देने के बाद भी प्रणाम करके चला गया। प्रणाम न करे तो करेगा ही क्या? मेरे सामने मुँह खोलने की उसकी हिम्मत है? या उसकी मॉं हिम्मत कर सकती है?''
आँसू बहाते लौट आये ध्रुव को देख, दासियों के द्वारा सारी हालत जानकर सुनीति रो पड़ी, तब बोली, ‘‘हाँ, बेटा, बात सच है। दासी जैसी ही निकृष्ट जीवन बितानेवाली मेरे गर्भ से तुम क्यों पैदा हुए? तुम्हारी मौसी की बातें सच हैं ! तुम्हारे लिए और मेरे वास्ते भी उस नारायण को छोड़ कोई दूसरा सहारा नहीं है।''
अपनी माता की बातें सुनने पर ध्रुव के मन को शांति मिली। बोला, ‘‘माँ, मैं तपस्या करने जा रहा हूँ। मुझे कृपया आशीर्वाद दो।''
‘‘क्या बोला? तुम तपस्या करोगे? तब तो नारायण से सुरुचि के गर्भ से पैदा होने का वर, माँग लो।'' सुनीति ने कहा।
‘‘माँ, ऐसी बातें अपने मुँह से न निकालो ! मैं तुम्हारा पुत्र हूँ! हमें कभी अपने को छोटा मानना नहीं चाहिए ! यह तो आत्महत्या के समान है। मैं यह साबित करना चाहता हूँ कि ध्रुव की माता कैसी भाग्यशालिनी है? दिशा हीनों के लिए दिग्दर्शक बनने का वर मैं नारायण से माँग लूँगा।'' यह कहकर ध्रुव उसी व़क्त घर से चल पड़ा।
रास्ते में नारद मुनि से बालक ध्रुव की मुलाक़ात हुई। नारद ने पूछा, ‘‘हे ध्रुव कुमार ! लगता है कि तुम खेलने के लिए चल पड़े?''
‘‘स्वामी, मैं तपस्या करने जा रहा हूँ!'' ध्रुव ने जवाब दिया।