Re: उम्र की अंतिम किश्त .........
मैं अपने बेटे को जब कहता हूँ कि अखबार में "आज से पचास साल पहले" वाले कोलम में क्या छपा है तो वो खीझ जाता है. उसे अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने, दफ्तर सँभालने और सारी सुविधाओं के बीच खीझ आती है हालांकि वो थोड़ी देर के लिए मुकेश अम्बानी, अमिताभ बच्चन, अब्दुल कलाम, सचिन तेंदुलकर को टी वी स्क्रीन पर देख कर जोश में आ जाता है, उनकी कहानियां उसे बहुत प्रेरित करती है (बेटे, यह प्रेरणा भी हमेशा के लिए होती तो मुझे संतोष होता) लेकिन जब मैं उसे बताता हूँ की प्रभात फेरियों में तक़रीर करने के बाद हम मोहल्ले के कूड़े कचड़े साफ़ करते थे, रात में पढने से पहले सुबह खेतों में कुदाल चला कर उगाये हुए लाल साग मण्डी में बेचकर बचाए हुए पैसे (पैसों नहीं, तब यह विकसित भारत इतना मंहगा कहाँ था) से किरासन तेल खरीदने से लेकर लालटेन साफ़ करने तक का सफ़र उसे प्रेरित नहीं कर पाते...
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