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Old 05-08-2013, 07:03 PM   #5
jai_bhardwaj
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Default Re: एक शाम .. तुम्हारे नाम

"सुनो, पार्क में ले चलोगे आज मुझे...वहां गए एक अरसा हो गया...चिल्ड्रेन्स पार्क में?" उसने इतने भारी आवाज़ में कहा की मैं एक पल के लिए घबरा सा गया.

"हाँ क्यों नहीं...चालो वहीँ चलते हैं..." मैंने जल्दी से गाड़ी पार्क के रास्ते के तरफ मोड़ दी..

मैं उसके प्रति थोड़ा चिंतित सा हो गया था....वो अपसेट सी दिख रही थी और जब भी वो ऐसे अपसेट या डिप्रेस्ड हो जाती थी तो मुझे हमेशा घबराहट होने लगती थी.शायद घर की कोई बात होगी जिससे वो इतनी परेसान सी है या किसी ने कुछ कह दिया होगा....मैं इसी उधेरबन में था की आखिर वो इतनी चुप सी क्यों है, की तभी मुझे लगा उसने कुछ पूछा है मुझसे...लेकिन उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी की पहले तो मुझे भ्रम हुआ वो खुद से बातें कर रही है, और मैंने उसे अनसुना कर दिया.

"कहो न, तुम्हे वो फिल्म याद है? "उसने जब दोबारा पूछा और हलके से मेरे कंधे को झकझोरा तब मुझे अहसास हुआ की वो ये सवाल मुझसे ही पूछ रही थी..
"क्या, कुछ पूछा तुमने?.."
"हाँ, उस फिल्म का वो सीन याद है तुम्हे जब प्रेम निशा से कहता है की आज पहली बार कोई लड़की मेरे गाड़ी के फ्रंट सीट पर बैठी है..."
"हाँ...याद है"
"ह्म्म्म....मैं तो सोच रही थी की तुम्हारे गाड़ी के फ्रंट सीट पर पहली बार बैठ रही हूँ, मुझे लगा था तुम वैसा ही कुछ प्यारा सा डायलोग कहोगे जिसमे थोडा इनोसेंट फ्लर्टिंग भी शामिल होगा, गेस आई वाज रोंग...." वो मुस्कुराने लगी थी.उसकी आवाज़ में पहली बार मुझे शरारत की एक झलक मिली थी.मेरे लिए ये एक राहत की बात थी.
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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