Re: एक शाम .. तुम्हारे नाम
"मुझे पता है जब भी मैं ऐसे चुप हो जाती हूँ तो तुम्हे डर लगता है कहीं मेरे आंसू न निकल आयें....लेकिन चिंता न करो...ऐसी कोई बात नहीं...आई नो हाउ तो टेक केअर ऑफ़ मायसेल्फ...तुमने ही तो सिखाया है...
और वैसे कभी तुम भी तो बातें शुरू करो...ये क्या की हमेशा मैं ही बोलती जाऊं...इस बार मैं तुम्हे मौका दे रही हूँ..." एक फीकी मुस्कान के साथ उसने कहा.
मुझे लगा कुछ ऐसा है जो वो बताना चाह रही है लेकिन खुल कर कह नहीं पा रही, मुझे उसको देखकर जाने कैसा महसूस होने लगा.वो जब भी ऐसे उदास हो जाती तो मैं बड़ा बेचैन सा हो जाता था.
मैंने अपना हाथ उसके हाथों पर रख दिया.मेरी इस हरकत के लिए वो शायद तैयार नहीं थी...वो सिहर सी उठी.नीचे दबी उसकी हथेलियों में थोड़ी हलचल सी हुई...लेकिन उसने अपना हाथ हटाया नहीं...बल्कि उसकी नज़रें हम दोनों की हथेलियों पर आकर ठहर गयी थी और वहीँ जमी रहीं...
"सुनो, क्या तुम्हे लगता है हम कभी साथ साथ रह पायेंगे". उसकी आवाज़ में एक भींगा सा कम्पन था..उसकी नज़रें अब भी हथेलियों पर जमी हुई थी.
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