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Dark Saint Alaick
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Default Re: ब्लॉग वाणी

अब भविष्य में कोई अनाथ न हो मेरे नाथ

-ओम द्विवेदी

देश के तमाम शहरों की तरह मैं भी एक सांस लेता शहर इंदौर हूं। दूर देवभूमि में पहाड़ों पर अटके हुए हैं मेरे लाल, मेरे आंसू पलकों की कंदराओं में फंसे हुए हैं। उन्हें याद करके बादलों की तरह बार-बार फटती है मेरी छाती। कोई फोन बजता है तो पल भर के लिए निचुड़ जाता है शरीर से रक्त। लगता है गर्म पिघले शीशे की तरह कान में गिर न जाए अनहोनी से लथपथ कोई ख़बर। पहली बारिश लेकर अपने आसमान में आए मेघ जो कभी छंद की तरह लगते थे आज नजर आते हैं काल की मानिंद। लगता है ये यहीं बरस जाएं जो बरसना है, हिमालय की तरफ न करें अपना रुख। मेरे जिगर के जो टुकड़े मेरे पास आने की जद्दोजहद कर रहे हैं उन पर फिर बिजली बनकर न गिर पड़ें ये काले-काले काल। जिन लोगों को जिंदगी पाने के लिए मैने बाबा केदारनाथ के चरणों में भेजा था उनकी मौत का हिसाब करना नहीं चाहता। जो जीवन देते हैं उनसे लाशें लेना नहीं चाहता। जिनको भक्ति और आस्था का संस्कार दिया है उनका अंतिम संस्कार करना नहीं चाहता। भूगोल की जंजीरों से अगर जकड़े नहीं होते मेरे पैर तो अब तक मैं पहाड़ों से बिन लेता छूटे और छिटके हुए बेटों को, गोदी में उठाकर भर देता उनके जख्म। गंगा, यमुना और अलकनंदा में जाल डालकर छान लेता सैलाब में बही सांसों को। राजवाड़ा को कांधे पर रख पहुंच जाता नाथ के दरवाजे पर और उसे स्थापित कर देता बही हुई धर्मशालाओं की जगह। छावनी मंडी को पीठ पर लादकर ले जाता और भर देता भूख का पेट। अगर नक्शे से चिपके होने का अभिशाप नहीं मिला होता तो छाती से चिपका लेता दर्द के मारों को, पी लेता उनके आंसू। बाबा! मैं तुम्हारे धाम की तरह भले हजारों साल पुराना नहीं हूं लेकिन मेरे सिरहाने विराजे हैं दो-दो ज्योतिर्लिंग। उनकी परिक्रमा करवाता हूं मैं भी। देश-दुनिया से आए अतिथियों की बलि लेने की अनुमति न मैं बादलों को देता और न हवाओं को। हमारे महाकाल मुर्दे की राख लेते हैं, जिंदा को मुर्दा नहीं करते। ओंकार पर्वत पर बैठे ओंकारेश्वर डांटते रहते हैं नर्मदा को कि वह घाट पर नहाते भक्तों को अपने आगोश में न ले। पिघलने वाले पहाड़ पर बैठकर भी आपका दिल नहीं पिघला। आप बैठे रहे और आपके चाहने वाले बहते रहे। आपके जयकारे लगाते-लगाते वे शून्य में खो गए। मेरे आंगन में देवी अहिल्या ने शिव भक्ति की जो ज्योति जलाई थी वह तूफानों में घिर गई है। बचाओ उसकी लाज। मेरे भी सीने में धड़कता है दिल। मैं भी सुबह सूरज को न्योता देता हूं रोशनी के लिए और शाम को देहरी पर रख देता हूं उम्मीद का दीया। अगर आपको सुनाई देती है आंसुओं की प्रार्थना तो सही सलामत लौटाओ मेरी संतानों को क्योंकि इनके दम पर ही तो मैं जिंदा और सक्रिय रहता हूं। मैं ही क्या पूरे भारत के शहर और गांव भी तो उन्ही लोगों से आबाद हैं जो हर साल आपके दाम पर आते हैं, आपको पूजते हैं और आपके आगे सीस नवाते हैं। बरसों से यह सिलसिला चलता आ रहा है। आगे भी बरसों-बरस यह सिलसिला चलता रहेगा। कहते हैं कि आप तो बहुत ही दयालू हैं। फिर आपको यह क्या सूझी कि आपकी दया को ही लोग तरस गए। अगर चाहते हो कि हमारी आस्थाओं की उम्र लंबी हो तो किसी को अनाथ मत करो मेरे नाथ। सबको सुरक्षित लौटाओ मेरे धाम, जिससे दोबारा भेज सकूं, उन सभी को फिर चारों धाम।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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