Re: इधर-उधर से
संकट में दूसरों का अनुभव भी कारगर
पहली कहानी:
कुछ समय पूर्व मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में रहने वाले दिनेश मालवीय राजकोट से सोमनाथ-जबलपुर एक्सप्रेस में दूसरे दर्जे की बोगी में सवार हुए। राजकोट और वडोदरा की यात्रा लगभग पांच घंटे की है और इस दौरान ट्रेन के स्टॉपेज वाले स्टेशनों पर बोगी में किन्नर चढ़ आते हैं और यात्रियों से जबरन 20 से 50 रुपए तक वसूलते हैं। उस दिन दिनेश एकमात्र यात्री था, जिसके पास किन्नर नहीं पहुंचे। संभवत: किन्नरों को लग रहा था कि वह बजाय पैसे देने के बहस और करने लग जाएगा। यह घटनाक्रम हर स्टेशन पर दोहराया जाता रहा। यात्री दबाव में पैसे तो दे देते, लेकिन उसके बाद किन्नरों समेत गुजरात सरकार को कोसते। यह घटनाक्रम पिछले एक दशक से ट्रेन यात्रियों के साथ दोहराया जा रहा है, लेकिन कोई भी इस 'लूट' पर रोक नहीं लगा सका है। कई लोगों का कहना है कि यही किन्नर चुनाव में नेताओं के लिए वोट मांगते हैं।
दूसरी कहानी:
मुंबई से प्रकाशित एक स्थानीय अखबार के वरिष्ठ पत्रकार किशोर राठौर सपरिवार कार से लोनावला रवाना हुए। प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित इस हिल स्टेशन पर कार को कुछ उद्दंड लोगों ने घेर लिया। वे पॉल्यूशन टैक्स के नाम पर 5 से लेकर 25 रुपए प्रति व्यक्ति वसूल रहे थे। किशोर अपनी दस लाख रुपए की कार की सोचकर मन मसोसकर उन्हें 100 रुपए देकर वहां से आगे बढ़े। कुछ देर बाद कार पार्किंग के नाम पर फिर कुछ उद्दंड लोगों ने उनसे 100 रुपए वसूले। मामला यहीं खत्म नहीं हुआ, पिकनिक के लिए गया परिवार 5 रुपए के वड़ा पाव 15 रुपए में और 60 रुपए की कोल्ड ड्रिंक पीकर बेहद खराब मन से वापस लौट आया।
Last edited by rajnish manga; 20-08-2013 at 01:52 PM.
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