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Old 28-12-2010, 01:13 PM   #9
Hamsafar+
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Default Re: हमारे व्रत त्यौहार

करवा-चौथ व्रत कथा


एक समय की बात है। पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले गए। किंही कारणों से वे वहीं रूक गये। उधर पांडवों पर गहन संकट आ पड़ा। शोकाकुल, चिंतित द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान के दर्शन होने पर अपने कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा। कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण मैं जानता हूँ, उसके लिए तुम्हें एक उपाय बताता हूँ। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम करवा चौथ का व्रत रखना। शिव गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, सब ठीक हो जाएगा। द्रोपदी ने वैसा ही किया। उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सब चिंताएं दूर हो गईं। कृष्ण ने दौपदी को इस कथा का उल्लेख किया था:
भगवती पार्वती द्वारा पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना हेतु उत्तम विधि पूछने पर भगवान शिव ने पार्वती से ‘करवा चौथ’ का व्रत रखने के लिए जो कथा सुनाई, वह इस प्रकार है –
एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता धोबिन स्त्री अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। करवा का पति एक दिन नदी के किनारे कपड़े धो रहा था कि अचानक एक मगरमच्छ उसका पाँव अपने दाँतों में दबाकर उसे यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति से कुछ नहीं बन पड़ा तो वह करवा...करवा.... कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
अपने पति की पुकार सुन जब करवा वहां पहुंची तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुँचाने ही वाला था। करवा ने मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगरमच्छ को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से अपने पति की रक्षा व मगरमच्छ को उसकी धृष्टता का दंड देने का आग्रह करने लगी- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगरमच्छ को उसके अपराध के दंड-स्वरूप आप अपने बल से नरक में भेज दें।
यमराज करवा की व्यथा सुनकर बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे यमलोक नहीं पहुँचा सकता। इस पर करवा बोली, "अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी।" उसका साहस देखकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। यमराज करवा की पति-भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि आज से जो भी स्त्री कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखेगी उसके पति की मैं स्वयं रक्षा करूंगा। उसी दिन से करवा-चौथ के व्रत का प्रचलन हुआ।
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