खत जिनके जवाब आने थे, मैंने लिखे नहीं...जिनसे बिछड़ना था उनसे मिलते रहे...तुम्हारे शहर में गिरवी रखा था खुद को कि जब्त हो कर भी शायद तुमसे मिलता रहूँ...
इक अजनबी शहर में शाम गुजारते हुए..आज भी समझ नहीं आता कि धोखा किसने दिया...शहर ने...जिंदगी ने...
या तुमने.
कौन किस पर, कौन पागल,
सूर्य किरणें और बादल,
एक तपता, एक छिपता,
एक ऊर्जा, एक आँचल।
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क़तरे में दरिया होता है
दरिया भी प्यासा होता है
मैं होता हूं वो होता है
बाक़ी सब धोखा होता है
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तेरे अंदाजों का कायल कौन न हो
पागल बनाते हैं, अफसोस भी जताते हैं