Re: इधर-उधर से
चूसी हुई नारंगी और कौवे
एक बार ईश्वर चंद विद्यासागरके एक मित्र उनसे मिलने आए। उस समय विद्यासागर नारंगी खा रहे थे। कुशल क्षेम पूछने के बाद ईश्वर चंद ने अपने मित्र से भी नारंगी खाने का आग्रह किया। विद्यासागर नारंगी छील कर उसकी फांके चूस-चूस कर अपने पास रख लेते थे मगर उनके मित्र नारंगी की फांकें चूस कर फेंकने लगे। यह देख कर विद्यासागर ने कहा, 'भाई इन्हें फेंको मत। ये किसी के काम आ जाएंगी।' यह सुनकर मित्र हैरत में पड़ गए। उन्होंने पूछा, 'अब ये किसके काम आएंगी? ये तो बेकार हो चुकी हैं।' विद्यासागर ने हंस कर कहा, 'यदि आप यह जानना चाहते हैं कि ये फांके किसके काम आएंगी तो इन्हें आप बाहर चबूतरे में रख दें फिर देखें कि ये बेकार की हैं या काम की।' मित्र ने वैसा ही किया। जैसे ही वे चूसी हुई फांके रख कर वहां से हटे, वैसे ही कौवों का झुंड उन्हें लेने आ गया। देखते ही देखते सारी फांकें लेकर कौवे चले गए।
विद्यासागर ने कहा, 'देख लिया न कि ये बेकार की फांकें कितने काम की हैं। कोई भी वस्तु बेकार नहीं है। हम जिसे बेकार समझकर फेंक देते हैं वह भी किसी न किसी प्राणी के काम आती हैं। अगर हमारे मन में प्राणिमात्र के प्रति थोड़ी भी करुणा है तो हमें उनके लिए सोचना चाहिए। यदि हमारे भीतर इस प्रवृत्ति का विकास हो सका तो हम देश में अनाज या दूसरी वस्तुओं की बर्बादी को आसानी से रोक सकते हैं।' यह सुन कर विद्यासागर के मित्र झेंप गए और बोले, 'छोटी-छोटी बातों के पीछे भी बड़ी बात छिपी होती है। लेकिन प्राय: लोग इसे समझ नहीं पाते। भविष्य में मैं आपकी इस सीख को याद रखूंगा।' विद्यासागर बोले, ' आप इसे अपने तक ही सीमित न रखें। अगर अपने साथियों को भी इसकी प्रेरणा देंगे तो देश का कोई भी प्राणी भूखा नहीं सोएगा।' मित्र ने ऐसा करने का वचन दिया।
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