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Originally Posted by sudhir
क्यूं न करू स्विच ?
अंधियारी निशा का साया सप्ताह्तं संध्या पर काम का चरम दबाव
वातानुकूलित लेब मे बैठ मेरा निशाचरी दिल सोचता हैं
क्यूं न करू स्विच ??
आउट डेटेड बोस के घिसे-पिटे वादों से क्षुब्ध आदिकालिन ख्यालों से आहत
अपने ही दोस्तों से प्रतिस्पर्द्धा करता मेरा सहज दिल सोचता हैं
क्यूं न करू स्विच ??
काम कि तलाश जिम्मेदारी कि आस सम्मान कि कसक मे
टीम दर टीम - प़ोजेकट दर प़ोजेकट मेरा भटकता दिल सोचता हैं
क्यूं न करू स्विच ??
नकारे माहोल मे मक्कारों के बीच विलुप्त होते प़ोजेक्टस् का साया
घटती कार्मिकों कि तादाद से, मेरा असुरक्षित दिल सोचता हैं
क्यूं न करू स्विच ??
आर & डी के लिये हायर्ड डवलपमेंट से बोझिल टेस्टिगं मे अटका
छुट्टियों को चिरकाल से प़तिक्षित मेरा कुंठित दिल सोचता हैं
क्यूं न करू स्विच ??
बहुराष्ट्रीय आय से सिंचित वित्त सरिता सी कंपनी 8% इनक़ीमेंट के चने चबाता
आनसाइट के सपने सपनो मे देखता मूल्यांकन- समीक्षा मे लताडित मेरा प़ताडित दिल सोचता हैं
क्यूं न करू स्विच ??
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मशीनोँ के बीच मेँ घिरे मशीनमैन की मृतप्राय हो गयी संवेदनाओँ ने हूक भरी भी तो काहे की सिर्फ और सिर्फ अपने लिए । शायद इस भौतिकता की आँधी मेँ शीर्ष पर स्थापित करने का प्रलोभन देकर यह बहुराष्ट्रीय कम्पनी इंजीनियर्स को मोटी रकम देकर मशीन बनाने का प्रयास क्रमिक किये हैँ । या यूँ कहिये कि उनके घरवालोँ को मोटी रकम देकर मशीन खरीद ले रहे हैँ । उसकी भावनाऐँ , संवेदनायेँ केवल अपनी कम्पनी तक सीमित हुई जा रही हैँ । आखिर इन मशीनोँ के रूप परिवर्तन और खरीद फरोख्त का जिम्मेदार कौन है ?