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Originally Posted by Kumar Anil
मशीनोँ के बीच मेँ घिरे मशीनमैन की मृतप्राय हो गयी संवेदनाओँ ने हूक भरी भी तो काहे की सिर्फ और सिर्फ अपने लिए । शायद इस भौतिकता की आँधी मेँ शीर्ष पर स्थापित करने का प्रलोभन देकर यह बहुराष्ट्रीय कम्पनी इंजीनियर्स को मोटी रकम देकर मशीन बनाने का प्रयास क्रमिक किये हैँ । या यूँ कहिये कि उनके घरवालोँ को मोटी रकम देकर मशीन खरीद ले रहे हैँ । उसकी भावनाऐँ , संवेदनायेँ केवल अपनी कम्पनी तक सीमित हुई जा रही हैँ । आखिर इन मशीनोँ के रूप परिवर्तन और खरीद फरोख्त का जिम्मेदार कौन है ?
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मैं आपके विचारों से सहमत नहीं हूँ, आप सिक्के के एक ही पहलु को देख रहे है. इन्ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारण आज भारत प्रगति के शिखर पर बढ रहा है. रोज़गार के नए अवसर पैदा हो रहे है. शायद आप किसी सरकारी नौकरी में है इसलिए इस तरह की राय रखते है.