17-09-2013, 12:19 PM
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Re: आकाश महेशपुरी के कुछ दोहे
Quote:
Originally Posted by आकाश महेशपुरी
चार दोहे-
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1-
कलयुग के इस दौर मेँ, बस हैँ दो ही जात।
एक अमीरी का दिवस, अरु कंगाली रात॥
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2-
कौन यहाँ है जानता, कब आ जाए अन्त।
चलना अच्छी राह पर, कर देँ शुरू तुरन्त॥
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3-
मौसम मेँ है अब कहाँ, पहले जैसी बात।
जाड़े मेँ जाड़ा नहीँ, गलत समय बरसात॥
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4-
यारी राजा रंक की, या दोनोँ की प्रीत।
अक्सर क्योँ लगती मुझे, ये बालू की भीत॥
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दोहे - आकाश महेशपुरी
aakash maheshpuri
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सीमित शब्दों में आपने जितना कुछ अभिव्यक्त कर दिया है, उसमें तो बड़े बड़े आख्यान भी कहने में विफल हो जाते हैं, मित्र. दूसरे और तीसरे क्रम पर दिये गये दोहे विशेष रूप से प्रभावित करते हैं.
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