कहानी/ क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
क्यों सूख गयी तू अनास नदी?
साभार/ कहानीकार: हेमंत जोशी (अंतरजाल से)
असीम राय निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन में मदन मोहन शर्मा का बेताबी से इंतज़ार कर रहा था। रात के दस बज कर दस मिनट हो चुके थे और इंदौर एक्सप्रेस निकलनेमें अब कोई पाँच मिनिट बचे थे। अचानक सीढ़ियों से भागते हुएउतरता मदन उसके पास आ पहुँचा। वह हाँफ रहा था लेकिन सिगरेट तबभी हाथ में थी।
एई दादा, अपना डिब्बा किधर है?
यही सामने वाला है। यह भी कोई समय है आने का? असीम गुस्से मेंभी था और आश्वस्त भी हो चुका था।सामान रखते-रखते गाड़ी चल पड़ी थी। दोनो सहकर्मी अपनी-अपनीबर्थ पर चादर बिछा कर बैठ चुके थे। असीम अपनी उत्सुकता कोज़्यादा देर तक रोक नहीं पाया। एई बताओ मदन कि झाबुआ जैसीपिछड़ी जगह जाने के लिए तुम उतना ज़ोर क्यों लगाया?
उधर हमारा दूसरा बीबी रहता।
ओरी बाबा! तुम तो छुपा रुस्तम रे। आज तक किसी को बताया नहीं।
मौका ही नहीं लगा यार। अभी दो सुट्टे लगा कर आता हूँ।
जब मदन सिगरेट पीकर, फ़ारिग होकर लौटा तो असीम महाराज ढेर होचुके थे। इसे भी जल्दी सोने की बीमारी है मदन ने सोचा। मदनबर्थ पर लेटकर अडोर्नो की कल्चरल प्रोडक्शन्स पढ़ने लगा। पर आजभी भारत में पढ़ने का वह शौक कहाँ।
भाई साहब! रात काफी हो चुकी है बत्ती बंद कर दें तो बेहतरहोगा। ऊपर की बर्थ से आवाज़ आई।
मदन का मन तो कर रहा था कि वह कहे कि अभी उसे और पढ़ना हैलेकिन सोचा हर कदम पर बहसबाजी से क्या मिलेगा। बत्ती तो बंद होगई पर उसे नींद कहाँ आती थी इतनी जल्दी। लेटे-लेटे वह झाबुआमें बीते अपने बचपन के दिनों के बारे में सोचने लगा।
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