Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
बन्दा नवाज़ियों पे खुदा-ए-करीम था
करता ना मैं गुनाह तो गुनाहे-अज़ीम था
बातें भी की खुदा ने दिखाया जमाल भी
वल्लाह क्या नसीब जनाबे कलीम था
दुनिया का हाल अहले अदम है ये मुख़्तसर
इक दो कदम का कूचा-ए-उम्मीद-ओ-बीम था
करता मैं दर्दमंद तबीबों से क्या रजू
जिसने दिया था दर्द बड़ा वो हकीम था
समां-ए-उफी क्या मैं कहूं मुख़्तसर है ये
बन्दा गुनाहगार था खालिक करीम था
जिस दिन से मैं चमन में हुआ ख्वाह-ए-गुल 'अमीर'
नाम-ए-सबा कहीं ना निशान-ए-नसीम था
-अमीर मीनाई
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