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Old 22-09-2013, 05:56 PM   #1
rajnish manga
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Default लम्बी कहानी/ रक्तबीज

लम्बी कहानी/ रक्तबीज
साभार: साहित्य कुञ्ज
लेखक: महेश चन्द्र द्विवेदी


मैं, हरिहरनाथ कपूर (छद्मनाम), एयर इंडिया की फ्लाइट पर असहज भाव से बैठा कादम्बिनीपत्रिका में रक्तबीजशीर्षक से लिखा लेख पढ़ रहा था। यह पत्रिका मैंने सामने की सीट के पीछे लगे झोले में से निकाली थी और यूँ ही इसके पन्ने उलटने लगा था। शीर्षक में नवीनता लगी अत: मैंने पूरा लेख पढ़ डाला। लेख श्री मार्कंडेयपुराण के आठवें अध्याय में देवी माहात्म्य के अंतर्गत रक्तबीज-वधनामक वर्णन पर आधारित था :-

"मातृगणों से पीड़ित दैत्यों को युद्ध से भागते देख रक्तबीज नामक महादैत्य क्रोध में भरकर युद्ध के लिये आया। उसके शरीर से जब रक्त की बूँद पृथ्वी पर गिरती, तब उसी के समान शक्तिशाली एक दूसरा महादैत्य पृथ्वी पर पैदा हो जाता। महासुर रक्तबीज हाथ में गदा लेकर इन्द्रशक्ति के साथ युद्ध करने लगा। तब ऐन्द्री ने अपने बज्र से रक्तबीज को मारा। बज्र से घायल होने पर उसके शरीर से बहुत सा रक्त चूने लगा। उसके शरीर से रक्त की जितनी बूँदें गिरी, उतने ही पुरुष उत्पन्न हो गये। वे सब रक्तबीज के समान ही वीर्यवान, बलवान और पराक्रमी थे। इस प्रकार उस महादैत्य के रक्त से प्रकट हुए असुरों द्वारा सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो गया। इससे देवताओं को उदास देख चण्डिका ने काली से कहा, "चामुण्डे। तुम अपना मुख और भी फैलाओ तथा मेरे शस्त्रपात से गिरने वाले रक्त बिन्दुओं को खा जाओ। यों कहकर चण्डिका देवी ने शूल से रक्तबीज को मारा और ज्यों ही उसका रक्त गिरा त्यों ही चामुण्डा ने उसे अपने मुख में ले लिया। इस प्रकार शस्त्रों से आहत एवं रक्तहीन होकर रक्तबीज पृथ्वी पर गिर पड़ा।"

मेरे जैसे आधुनिक विचारों वाले वैज्ञानिक को लेख कल्पना की उड़ान-मात्र लगा और उसके समाप्त होते-होते मेरा ध्यान पुन: अपने वर्तमान पर खिंच गया। उस समय मुझे लग रहा था कि यह संसार सुख का अथाह सागर है जिसमें अपनी इच्छानुसार तैरने को मुझे छोड़ दिया गया है। दो माह पहले ही मैं इंडियन इंस्टीच्यूट आफ टेक्नोलोजी से कम्प्यूटर में एम.टेक. करने के उपरान्त माइक्रोसौफ्ट लिमिटेड कम्पनी (छद्मनाम) के द्वारा चुना गया था और मुझे न्यूयार्क स्थित कार्यालय में 16 जुलाई, 1993 से नियुक्ति का आदेश दिया गया था। यह कम्पनी मेरे साथ के सभी अभ्यर्थियों के लिये ड्रीम-कम्पनीथी और केवल मैं अकेला ही चुनाव में सफल हुआ था। मेरे उच्चस्तर के साक्षात्कार के अलावा मेरा आई.आई.टी. का गोल्ड-मेडलिस्टहोना भी मेरे चुने जाने में सहायक था। मेरी फ्लाइट दिल्ली से लंदन को जा रही थी। मेरे हवाई जहाज पर यात्रा करने और विदेश जाने दोनों का यह प्रथम अवसर होने के कारण प्रत्येक दृश्य अथवा घटना के प्रति मेरी इंद्रियाँ उसी प्रकार सचेत थीं जैसे एक शिशु की इंद्रियाँ उसके जीवन में घटित होने वाली किसी नवीन घटना को आत्मसात करने को होती है। हवाई जहाज की खिड़की पर लगी सीढ़ियों पर चढ़ने पर जैसे ही मैंने आँख उठाई थी तो अप्सरा समान एक सुंदरी को नमस्ते की मुद्रा में मेरा स्वागत करते पाया था। मैं उसके नख-शिख, वेश-भूषा देखता ही रह गया था कि उस सुंदरता की मूiर्त के मुख से पुष्प सम झरते शब्द मेरे कानों को सुनाई दिये थे, मेरी नासिका में महकने लगे थे और मेरे नेत्रों को दिखाई दिये थे, "कृपया बोर्डिंग-पास दिखायें।" मेरा सीट नम्बर देखकर उसने मुझे मेरी सीट इंगित कर दी थी और मैं भौंचक्का सा वहाँ आकर बैठ गया था।

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