Re: अकबर - बीरबल...........................
पूरी रात सराय में बिता कर मैं अगले दिन सूरज निकलने से पहले ही आगे के लिये निकल पड़ा. अगले पाँच सात दिन बड़े चैन से गुजरे – कोई बड़ा हादसा भी नहीं हुआ. दो हफ्ते पूरे होने को आये थे और मैं अब तक पिछले नगर की घटना को थोड़ा थोड़ा भूल भी चुका था. पर हुज़ूर-ए-आला अगले दिन जो मैंने देखा वैसा नज़ारा तो शायद नरक में भी देखने को नहीं मिलेगा. शहर की सड़कें खून से लाल थीं, चारों तरफ बच्चों, आदमियों, औरतों, बकरियों और तकरीबन हर चलने फ़िरने वाली चीज़ों की लाशें पड़ी हुई थीं. इमारतें आग में जल रहीं थी. मैंने सड़क के कोने में सहमे से बैठे हुये एक बूढ़े से पूछा कि क्या किसी दुश्मन की फौज ने आ कर ये कहर ढा दिया है. बूढ़े ने आँसू पोंछते हुये बताया शहर में हिन्दू और मुसलमानों के बीच दंगा हो गया और बस मार काट शुरू हो गयी. मैंने विचलित आवाज़ में पूछा कि दंगा शुरू कैसे हुआ. पता चला कि एक आवारा सुअर दौड़ते दौड़ते एक मस्जिद में घुस गया – किसी ने चिल्ला कर कह दिया कि ये किसी हिन्दू की ही करतूत होगी. बस दोनों गुटों के बीच तलवारें तन गयीं और जो भी सामने आया अपने मजहब के लिये कुर्बान हो गया. मुझसे वो सब देखा नहीं गया और मैं घोड़ा तेजी से दौड़ाते हुये उस शहर से कोसों दूर निकल गया.
तीसरा हफ्ता शुरू हो गया था और मैं भगवान से मना रहा था कि हिन्दुस्तान की सीमा पार होने से पहले मुझे अब कोई और बेवकूफी भरा नजारा देखने को न मिले. पर जहाँपनाह शायद ऊपर वाले को इतनी नीचे से कही गयी फरियाद सुनाई नहीं दी. अगले दिन जब मैं मूढ़गढ़ पहुँचा तो क्या देखता हूँ कि युवकों की एक टोली कुछ खास लोगों को चुन चुन कर पीट रही है. मैं एक घायल को ले कर जब चिकित्सालय गया तो पता चला कि सारे चिकित्सक हड़ताल पर हैं और किसी भी मरीज़ को नहीं देखेंगे. खैर मैं उस घायल को चिकित्सालय में ही छोड़ कर बाजार की तरफ चल पड़ा जरूरत का कुछ सामान खरीदने के लिये. बाजार पहुँचा तो पाया कि सारी दुकानें बंद हैं. और, कुछ एक जो खुली हैं उनके दुकानदार अपनी टूटी हुई टाँगो को पकड़ कर अपनी दुकानों को लुटता हुआ देख रहे हैं – पता चला कि वो लोग बंद में हिस्सा न लेने की सज़ा भुगत रहे हैं. सारी स्तिथि से मुझे एक नौजवान ने अवगत कराया जो कि उस समय एक दूसरे युवक की पिटाई करने में जुटा हुआ था. उसने बताया कि जहाँपनाह अकबर ने दो दिन पहले घोषणा की कि अस्सी फीसदी सरकारी नौकरियाँ पिछड़ी जाति के लोगों को ही दी जायेंगी. उसी के विरोध में पिछड़ी जाति के युवकों की पिटाई की जा रही है और पूरे नगर में सब हड़ताल पर हैं. मैंने उस युवक से कहा कि इन पिछड़ी जाति के युवकों को पीट कर तुमको क्या मिलेगा – अरे पीटना ही है तो उसे पीटो जिसने ऐसी घोषणा की. और, हड़ताल और बंद करने से तो हम जैसे साधारण नागरिकों को ही तकलीफ़ उठानी पड़ती है. मेरी बातों को अनसुना कर के वो एक खुली हुई दुकान की तरफ लाठी ले कर दौड़ पड़ा..............
क्रमशः ...
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