Re: इधर-उधर से
आज मैं आपके समक्ष संस्कृत साहित्य का एक ऐसा श्लोक प्रस्तुत कर रहा हूँ जो इस मायने में अनोखा है कि इसमें मात्राओं के अतिरिक्त केवल एक ही अक्षर का प्रयोग किया गया है. जो भी इसे पढता है, दांतों तले उंगली दबाने पर विवश हो जाता है.
भारवि रचित महाकाव्य “किरातार्जुनीयम” में निम्नलिखित श्लोक आता है, जिसमेमहाकवि ने एक ही अक्षर का प्रयोग किया है:
ननोनन्नुनोनुन्नोनो नाना नानाननाननु ।
नुन्नोऽनुन्नोननुन्नेन्नो नाने नानुन्ननुन्ननुन।।
(15/14)
बहुत तलाश करने के बाद भी इसका अर्थ नहीं खोज पाया. अंत में हमारे अपने परम आदरणीय “डार्क सेंट अलैक” की कृपा से इस श्लोक का भावार्थ मिल सका.
भावार्थ:
हे नानामुख वाले (नानानन)! वह निश्चित ही (ननु) मनुष्य नहीं है जो अपने से कमजोर से भीपराजित हो जाय। और वह भी मनुष्य नहीं है (ना-अना) जो अपने से कमजोर को मारे (नुन्नोनो)। जिसका नेता पराजित न हुआ हो वह हार जाने के बाद भी अपराजित है (नुन्नोऽनुन्नो)। जो पूर्णनतः पराजित को भी मार देता है (नुन्ननुन्ननुत्) वहपापरहित नहीं है (नानेना)।
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