Re: ~!!आनन्दमठ!!~
इसी समय एक बोल उठा-ठहरो, ठहरो! अगर यह मांस ही खाकर आज भूख मिटानी है, तो इस सूखे नरकंकाल को न भूनकर, आओ इस कोमल लड़की को ही भूनकर खाया जाए
एक बोला-जो हो, भैया ! एक को भूनो ! हम तो भूख से मर रहे हैं। इस पर सबने लोलुप दृष्टि से उधर देखा, जिधर अपनी कन्या को लिए हुए कल्याणी पड़ी थी। उस सबने देखा कि वह स्थान सूना था, न कन्या थी और न माता ही। डाकुओं के आपसी विवाद और मारपीट के समय सुयोग पाकर कल्याणी गोद में बच्ची को चिपकाए वन के भीतर भाग गई। शिकार को भागा देखकर वह प्रेत-दल मार-मार करता हुआ चारों तरफ उन्हें पकड़ने के लिए दौड़ पड़ा। अवस्था विशेष में मनुष्य पशुमात्र रह जाता है।
रोग को भी अवसर मिला- ज्वर, हैजा, क्षय, चेचकफैल पड़ा। विशेषत: चेचक का बड़ा प्रसार हुआ। घर-घर लोग महामारी से मरने लगे। कौन किसे जल देता है- कौन किसे छूता? कोई किसी की चिकित्सा नहीं करता, कोई किसी को नहीं देखता था। मर जाने पर शव कोई उठाकर फेंकता नहीं था। अति रमणीय गृह-स्थान आप ही सड़कर बदबू करने लगे। जिस घर में एक बार चेचक हुआ, रोगी को छोड़कर घरवाले भाग गए।
महेंद्र सिंह पदचिन्ह के बड़े धनी व्यक्ति हैं– लेकिन आज धनी-गरीब सब बराबर हैं। इस दु:खपूर्ण अकाल के समय रोगी होकर उसके आत्मीय-स्वजन, दासी-दास सभी चले गए हैं। कोई मर गया, कोई भाग गया। उस वृहत परिवार में उनकी स्त्री, वे और गोद में एक शिशु-कन्या मात्र रह गई है। इन्हीं लोगों की बात कह रहा हूं।
उनकी भार्या कल्याणी ने चिंता छोड़कर गोशाला में जाकर गाय दुही। इसके बाद दूध गर्म कर कन्या को पिलाया और गऊ को घास खाने के लिए डाल दिया। वह लौटकर जब काई तो महेंद्र ने कहा-इस तरह कितने दिन चलेगा?
कल्याणी बोली– ज्यादा दिन नहीं! जितने दिन चले, जितने दिन मैं चला पाती हूं, चला रही हूं। इसके बाद तुम लड़की को लेकर शहर चले जाना।
महेंद्र- अगर शहर ही चलना है तो तुम्हें ही इतनी तकलीफ क्यों दी जाय? चलो न, अभी चलें!
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