Re: गोदान -"प्रेमचन्द"
‘ बताना अपना सिर और क्या। मैं इस व्यभिचारशाला को एक धेली भी नहीं देना चाहता! ‘
‘ तो तुम्हें देने को कौन कहता है? ‘
खन्ना ने होंठ चबाकर कहा — कैसी बेसमझी की-सी बातें करती हो? तुम वहाँ नींव रखोगी और कुछ दोगी नहीं, तो संसार क्या कहेगा?
गोविन्दी ने जैसे संगीन की नोक पर कहा — अच्छी बात है, लिख दूँगी।
‘ आज ही लिखना होगा। ‘
‘ कह तो दिया लिखूँगी। ‘
खन्ना बाहर आये और डाक देखने लगे। उन्हें दफ़्तर जाने में देर हो जाती थी तो चपरासी घर पर ही डाक दे जाता था। शक्कर तेज़ हो गयी है। खन्ना का चेहरा खिल उठा। दूसरी चिट्ठी खोली। ऊख की दर नियत करने के लिए जो कमेटी बैठी थी, उसने तय कर लिया कि ऐसा नियन्त्रण नहीं किया जा सकता। धत तेरी की! वह पहले यही बात कह रहे थे; पर इस अग्निहोत्री ने गुल मचाकर ज़बरदस्ती कमेटी बैठाई। आख़िर बचा के मुँह पर थप्पड़ लगा। यह मिलवालों और किसानों के बीच का मुआमला है। सरकार इसमें दख़ल देनेवाली कौन।
सहसा मिस मालती कार से उतरीं। कमल की भाँति खिली, दीपक की भाँति दमकती, स्फूर्ति और उल्लास की प्रतिमा-सी — निश्शंक, निर्द्वन्द्व मानो उसे विश्वास है कि संसार में उसके लिए आदर और सुख का द्वार खुला हुआ है। खन्ना ने बरामदे में आकर अभिवादन किया।
मालती ने पूछा — क्या यहाँ मेहता आये थे?
‘ हाँ, आये तो थे। ‘
‘ कुछ कहा, कहाँ जा रहे हैं?’
‘यह तो कुछ नहीं कहा।’
‘जाने कहाँ डुबकी लगा गये। मैं चारों तरफ़ घूम आयी। आपने व्यायामशाला के लिए कितना दिया? ‘
खन्ना ने अपराधी-स्वर में कहा — मैंने इस मुआमले को समझा ही नहीं।
मालती ने बड़ी-बड़ी आँखों से उन्हें तरेरा, मानो सोच रही हो कि उन पर दया करे या रोष।
‘इसमें समझने की क्या बात थी, और समझ लेते आगे-पीछे, इस वक़्त तो कुछ देने की बात थी। मैंने मेहता को ठेलकर यहाँ भेजा था। बेचारे डर रहे थे कि आप न जाने क्या जवाब दें। आपकी इस कंजूसी का क्या फल होगा, आप जानते हैं? यहाँ के व्यापारी समाज से कुछ न मिलेगा। आपने शायद मुझे अपमानित करने का निश्चय कर लिया है। सबकी सलाह थी कि लेडी विलसन बुनियाद रखें। मैंने गोविन्दी देवी का पक्ष लिया और लड़कर सब को राज़ी किया और अब आप फ़रमाते हैं, आपने इस मुआमले को समझा ही नहीं। आप बैंकिंग की गुत्थियाँ समझते हैं; पर इतनी मोटी बात आप की समझ में न आयी। इसका अर्थ इसके सिवा और कुछ नहीं है, कि तुम मुझे लज्जित करना चाहते हो। अच्छी बात है, यही सही? ‘
मालती का मुख लाल हो गया था। खन्ना घबराये, हेकड़ी जाती रही; पर इसके साथ ही उन्हें यह भी मालूम हुआ कि अगर वह काँटों में फँस गये हैं, तो मालती दल-दल में फँस गयी है; अगर उनकी थैलियों पर संकट आ पड़ा है, तो मालती की प्रतिष्ठा पर संकट आ पड़ा है, जो थैलियों से ज़्यादा मूल्यवान है। तब उनका मन मालती की दुरवस्था का आनन्द क्यों न उठाये? उन्होंने मालती को अरदब में डाल दिया था। और यद्यपि वह उसे रुष्ट कर देने का साहस खो चुके थे; पर दो-चार खरी-खरी बातें कह सुनाने का अवसर पाकर छोड़ना न चाहते थे। यह भी दिखा देना चाहते थे कि मैं निरा भोंदू नहीं हूँ। उसका रास्ता रोककर बोले — तुम मुझ पर इतनी कृपालु हो गयी हो, इस पर मुझे आश्चर्य हो रहा है मालती!
मालती ने भवें सिकोड़कर कहा — मैं इसका आशय नहीं समझी।
‘ क्या अब मेरे साथ तुम्हारा वही बतार्व है, जो कुछ दिन पहले था? ‘
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