Re: शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
मैं सर झुका कर एम्बुलेंस की तरफ़ जाता हूँ। आसपास कई मरीज। एक आवाज। ' बच्चन जी, आप चिंता न करें। आपको कुछ नहीं होगा!' मैं उनके आशावाद के बदले मंद मुस्कान लौटाता हूँ, श्वेता मेरा हाथ पकड़ कर सहारा देती है, मैं गाड़ी में बैठ जाता हूँ जो कि अपने आप को तैयार कर रही है मीडिया की पीछा करने की आदत से बचने का।
यात्रा में हर बम्प पर दर्द होता है। अस्पताल पर निकलते वक़्त और भी ज्यादा। मैं झुज्कता हूँ और मुँह छुपा लेता हुँ मीडिया से बचने के लिए और प्रार्थना करता हूँ कि जल्दी से अपने गंतव्य के द्वार में प्रवेश कर जाऊँ। मेरे सिर पर अभिषेक का आश्वासन से भरा हाथ है और उनके आश्वासित शब्द सारी प्रक्रिया को मार्गदर्शन देते हैं।
'अंदर। अब हम गलियारों में हैं। अब हम लिफ़्ट में हैं। अब कमरे के अंदर। ठीक। ऐसे।"
नामांकित कमरा अभी तैयार नहीं है और मैं इसलिए एक अस्थायी पलंग पर लेट जाता हूँ। नर्स, स्टाफ़, डॉक्टर सब जुट जाते है और नियमित रुप से काम शुरु हो जाता है। आर-टी पहले लगाई जाएगी। रायल्स ट्यूब। एक मोटी ट्यूब जो कि नथुनों में डाली जाती है और फिर वहाँ से मुँह और गले में होते हुए आहार नली में। सब प्रयास असफल। आहार नली की बजाय विंड पाईप में चली जाती है और मेरा गला घोंटती है। मैं छटपटाता हूँ। हर प्रयास के साथ मेरा दर्द बड़ता जाता है। लेकिन करना भी आवश्यक है पेट तक सामन लाने-ले जाने के लिए। थोड़ी देर के लिए मुझे राहत दी जाती है फिर से कोशिश करने से पहले। एक घंटे के बाद मेरा निर्धारित कमरा तैयार हो जाता है। तुरंत मुझे वहाँ ले जाया जाता है। आर-टी लगाने का काम फिर से शुरु और कुछ प्रयासो के बाद ये सफलता पुर्वक लग भी जाती है। मैं हर सांस के साथ प्लास्तिक की ट्यूब और हर घूंट के साथ प्लास्तिक की ट्यूब निगलता हूँ। भयंकर। न खाना। न पीना। एक बूँद तक नहीं। दोनों हाथों पर और छेद किए गए। कई और सुईयाँ, और आई-वी के स्टेंड द्रव्य पदार्थों की बोतलों से लैस। तार ही तार सारे शरीर पर। लोग व्यस्त है मेरे शरीर के विभिन्न अंगो के साथ। यहाँ दबा, वहाँ छेद, यहाँ खींचतान। सब सामन्य प्रक्रिया।
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