Re: लघु उपन्यास: हाजी मुराद (लियो टॉलस्टॉय)
अंतत: जब मैं फूल तोड़ने में सफल हुआ, तब डण्ठल फूटकर छितर चुका था। यह फूल भी उतना ताजा और सुन्दर प्रतीत नहीं हुआ। उसका रुक्ष स्थूल स्वरूप गुच्छे के दूसरे फूलों से मेल नहीं खा रहा था। मुझे पश्चात्ताप हुआ कि मैंने एक फूल को खराब कर दिया, जो अपनी जगह खिला हुआ ही सुन्दर था। मैंने उसे फेंक दिया। 'कितनीऊर्जा और जीवन-शक्ति!' अपने उस प्रयास को याद करते हुए मैंने सोचा, जो मैंने उसे तोड़ने में किया था। 'कैसी घोर निराशा के साथ उसने अपना जीवन बचाने के लिए संघर्ष किया और फिर कैसे प्यार के साथ स्वयं को समर्पित कर दिया था।'
मेरे घर का रास्ता ताजा जुते और परती पड़े खेतों के बीच से होकर धूल भरी काली धरती पर से ऊपर की ओर जाता था। जुती हुई जमीन एक बहुत विस्तृत धर्मशुल्क भूमि थी और इसके दोनों ओर और सामने जहाँ तक नजर जाती थी, बस हल से बने सीधे खाँचे, जिन पर अभी हेंगा नहीं चलाया गया था, ही दीख पड़ते थे। खेतों को भलीभाँति जोता गया था, जिससे एक भी पौधा या घास की कोई पत्ती ऊपर निकली दीख नहीं रही थी। केवल काली जमीन ही सामने थी। 'मानव कितना विध्वसंक प्राणी है! अपने जीवन निर्वाह के लिए वह किस प्रकार प्राकृतिक जीवन को ही नष्ट कर डालता है,' उस जड़ काली धरती पर किसी सचेतन जीव को अनजाने ही खोजते हुए मैंने सोचा। तभी सामने मार्ग के दाहिनी ओर एक गुच्छा-सा कुछ मुझे दीख पड़ा। जब मैं निकट गया तो मैंने देखा कि यह भटकटैया (तातार) का एक गुच्छा था।
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