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Teach Guru
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Default Re: दिलचस्प बॉलीवुड

गुलाब से करती थीं मधुबाला मोहब्बत का इजहार
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बेमिसाल हुस्न की मलिका मधुबाला दिलबरों को लाल गुलाब और प्रेमपत्र देकर अपनी मोहब्बत का इजहार किया करती थीं। मधुबाला के प्रेमियों में उनके बचपन के दोस्त लतीफ, निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा और कमाल अमरोही, अभिनेता प्रेमनाथ, अशोक कुमार तथा दिलीप कुमार, पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो और गायक अभिनेता किशोर कुमार के नामों का शुमार था, जिन्हें लाल गुलाब देकर ही उन्होंने अपने प्यार का इजहार किया था।

मधुबाला से जुड़ा एक और रोचक वाकया है कि उनके बारे में एक नजूमी भविष्यवक्ता कश्मीर वाले बाबा ने भविष्यवाणी की थी कि मुमताज मधुबाला के बचपन का नाम का भविष्य चमकदार होगा। बड़ी होकर वह बहुत नाम कमाएगी तथा बहुत पैसा और शोहरत पाएगी, लेकिन उसे जिंदगी में खुशी नहीं मिलेगी। उसका दिल बार-बार टूटेगा और कम उम्र में ही उसका इंतकाल हो जाएगा। नजूमी की एक-एक बात सच साबित हुई। बॉलीवुड की फिल्मी दुनिया से ऐसे ही कई और दिलचस्प वाकये जुडे़ हुए हैं। मौलिक और बेहद कठिन संगीत रचनाओं के लिए मशहूर संगीतकार सज्जाद हुसैन को अपनी प्रतिभा पर बेहद नाज था। संगीत के स्तर से किसी तरह का समझौता नहीं करने के कारण अक्सर निर्माता-निर्देशक, कलाकार या गायक में से किसी न किसी से इस हद तक उनकी अनबन हो जाती थी कि फिर उनके एक साथ काम करने की गुंजाइश ही नहीं रह जाती थी। अपने रचनाकर्म में पूर्णता लाने के इसी जुनून के कारण सज्जाद ने संगदिल फिल्म के एक गीत ये हवा ये रात ये चांदनी.. के 17 रीटेक लिए थे और फिर भी वह संतुष्ट नहीं हुए थे।

सज्जाद मानते थे कि फिल्म इंडस्ट्री में दो ही व्यक्ति ऐसे हैं, जो उनकी संगीत रचनाओं के साथ कुछ हद तक इंसाफ कर सकते हैं नूरजहां और लता मंगेशकर। वह तलत महमूद को गलत महमूद और किशोर कुमार को शोर कुमार कहा करते थे। लता मंगेशकर ने माना है कि उनकी बनाई धुन पर गीत गाना चुनौती होता था। एक बार उनकी एक बेहद मुश्किल संगीत रचना पर गायन की कोशिश करते देखकर उन्होंने लता मंगेशकर से व्यंग्य में कहा था यह मियां नौशाद की संगीत रचना नहीं है, आपको मेहनत करनी पडे़गी। एक दिलचस्प वाकया सदाबहार अभिनेता एवं निर्माता-निर्देशक देवानन्द और गुरुदत्त के बीच हुआ था। 1945 में पुणे में प्रभात फिल्म कंपनी के लिए काम करते समय दोनों कलाकार एक ही धोबी को अपने कपडे़ दिया करते थे। किस्सा यूं हुआ कि एक दिन देवानन्द की कमीज बदल गई। उस दौरान वह फिल्म हम एक हैं की शूटिंग कर रहे थे। सेट पर उन्होंने देखा कि फिल्म के हमउम्र कोरियोग्राफर गुरुदत्त उनकी कमीज पहने हुए हैं जब उन्होंने इस बारे में गुरुदत्त से पूछा तो उन्होंने कहा कि यह उनकी कमीज नहीं है। चूंकि उनके पास दूसरी कमीज नहीं है, इसलिए वह इसे पहने हुए हैं। इसके बाद देवानन्द और गुरुदत्त के बीच गहरी दोस्ती हो गई और उन्होंने वादा किया कि यदि वे कभी फिल्म निर्माता बनते हैं तो एक-दूसरे को अपनी फिल्मों में नायक और निर्देशक के रूप में मौका देंगे। देवानन्द ने बाजी फिल्म में गुरुदत्त को निर्देशक बनाकर अपना वादा पूरा किया, लेकिन गुरुदत्त कुछ समय तक अपना वादा पूरा नहीं कर पाए तो देवानन्द के शिकायत करने पर उन्होंने सीआअीडी फिल्म में उन्हें नायक बनाकर अपना वादा पूरा कर दिया।

संगीतकार नौशाद नई-नई तरकीबों से फिल्मों में संगीत देने के लिए मशहूर थे। उस जमाने में जब साउंड प्रूफ रिकार्डिग रूम नहीं हुआ करते थे। उन्होंने अपनी फिल्म रतन के लिए एक देसी, लेकिन कारगर तरीके का इस्तेमाल किया था। गीतों में ध्वनि प्रभाव लाने के लिए उन्होंने माइक्रोफोन को मिट्टी से बनी टाइल वाले शौचालय में रखवा दिया, ताकि आवाज के उससे टकराकर लौटने पर अपेक्षित परिणाम मिल सके। इसी तरह नौशाद ने मुगले आजम फिल्म के गीत प्यार किया तो डरना क्या.. के एक हिस्से को अपेक्षित ध्वनि प्रभाव लाने के लिए लता मंगेशकर से चमकदार टाइलों वाले बाथरूम में गवाकर उसकी रिकार्डिग की। नौशाद से जुड़ा एक रोचक वाकया यह है कि उनकी शादी के समय बाजे वाले फिल्म रतन के उनके सुपरहिट गीतों की धुनें बजा रहे थे, लेकिन संगीत के प्रति अपने परिवार के तंग नजरिए के कारण वह गीतों के धुनें बनाने वाले संगीतकार की आलोचना कर रहे अपने पिता और ससुर को उस समय यह बताने की हिम्मत नहीं जुटा सके कि इन गीतों की धुनों के रचयिता वही हैं।

निर्माता अशोक कुमार की महल फिल्म के निर्माण के दौरान भी कई रोचक वाकये हुए थे। संगीतकार खेमचंद प्रकाश इस फिल्म के लिए गायन के क्षेत्र में उभर रही एक दुबली-पतली लडकी लता मंगेशकर से गाने गवाना चाहते थे, लेकिन अशोक कुमार के बहनाई शशधर मुखर्जी को इस पर एतराज था। उनका कहना था कि लता की आवाज बेहद पतली और तीखी है, लेकिन अशोक कुमार संगीतकार की पसंद के हामी बन गए और उसके बाद तो लता मंगेशकर ने जो मुकाम हासिल किया उस तक सदियों में ही शायद कोई पहुंच पाएगा। इस फिल्म के बेहद मकबूल गीत आएगा आने वाला..से जुड़ी रोचक बात यह है कि अशोक कुमार और फिल्म के निर्देशक चाहते थे कि लता इस गीत को इस तरह गाएं मानो फिल्म की नायिका कहीं दूर से करीब आती जा रही हो। स्टूडियो काफी बड़ा था। लता को उसके एक कोने में खड़ा कर दिया गया और उनसे कहा गया कि वह गाना गाते हुए धीरे-धीरे माइक्रोफोन तक आएं, जो स्टूडियो के बीच में रखा गया था। चूंकि उस समय डबिंग और संपादन के लिए उपकरण नहीं थे, इसलिए गाने को एक बार में ही पूरा करना था जो बेहद मुश्किल काम था। गाने की रिकार्डिग करने में पूरा दिन लग गया, लेकिन लता मंगेशकर ने इस चुनौती को पूरा करके ही दम लिया।

लता मंगेशकर बताती हैं कि एक बार वह सख्त बीमार पड़ गई थीं और डाक्टरों ने कह दिया था कि वह अब कभी गाने नहीं गा पाएंगी लेकिन उन्होंने हेमन्त कुमार के संगीत निर्देशन में फिल्म बीस साल बाद के लिए कहीं दीप जले कहीं दिल.. गीत गाकर डाक्टरों की बात को झुठलाने के साथ ही अपने उन आलोचकों का मुंह भी बंद कर दिया, जो तरह-त्रह की अटकलें लगा रहे थे। लता मंगेशकर से जुड़ा एक और रोचक प्रसंग है कि कई साल पहले रेलगाड़ी में सफर के दौरान अभिनय सम्राट् दिलीप कुमार ने उनसे मुलाकात होने पर छूटते ही कहा था क्या तुम वही मराठी गायिका हो, जो उर्दू के शब्दों का सही ढंग से उच्चारण नहीं कर पाती हो। इसके बाद तो उन्होंने उर्दू के तलफ्फुज के लिए इतनी मेहनत की और गीतों में इतने सही ढंग से उनका उच्चारण किया कि उर्दूदां लोगों को भी रश्क होने लगे। फिल्म विधा के हर फन में माहिर किशोर कुमार के बारे में कई दिलचस्प बातें हैं। उनमें से एक यह है कि जब वह तीन साल के थे तो उन्हें बुरी तरह चोट लग गई थी और वह कई दिनों तक बिना रुके दर्द से चिल्लाते रहे थे। बडे़ भाई अशोक कुमार ने कई मौकों पर मजाक में कहा था कि शायद यही कारण रहा कि किशोर की आवाज इतनी सुरीली बन गई।

जानी वाकर के फिल्मों में आने की घटना भी बड़ी रोचक है। वह अपने बडे़ परिवार का गुजारा चलाने के लिए मुंबई में बस कंडक्टरी करते थे और इस दौरान अपने अभिनय से यात्रियों का मनोरंजन किया करते थे। उस वक्त बाजी फिल्म के लिए संवाद लिख रहे अभिनेता बलराज साहनी संयोग से उसी बस में चढे़, जिसमें जानी वाकर अपनी कला से यात्रियों का मनोरंजन कर रहे थे। बलराज साहनी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने जानी वाकर को फिल्मों में काम करने का सुझाव दिया और इसके लिए योजना भी बनाई कि वह बाजी फिल्म का निर्देशन कर रहे गुरुदत्त के पास जाएं और शराबी का अभिनय करते हुए वहां उधम मचाएं। इसके बाद राज खोल दिया जाएगा। जानी वाकर ने ऐसा ही किया। गुरुदत्त को लगा कि कोई शराबी उनके कमरे में घुसा है। उन्होंने गेटकीपरों से उसे तुरंत बाहर निकालने को कहा। तभी बलराज साहनी ने पीछे से आकर उन्हें बताया कि यह व्यक्ति शराबी नहीं है, शराबी का अभिनय कर रहा है। गुरुदत्त जानी वाकर के अभिनय से बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी फिल्म में शराबी के अभिनय के लिए उन्हें तुरंत चुन लिया।

अपनी बुलंद आवाज के लिए मशहूर निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी की फिल्मों से जुड़ा एक बेहद रोचक वाकया है। तत्कालीन बंबई के मिनर्वा थियेटर में उनकी फिल्म शीश महल दिखाई जा रही थी। इस दौरान मोदी स्वयं थियेटर में मौजूद थे। उन्होंने देखा कि पहली पंक्ति में एक व्यक्ति आंखें बंद किए बैठा है। इससे मोदी बेहद नाराज हुए और एक कर्मचारी को कहा कि वह दर्शक को उसका पैसा वापस करके थियेटर से बाहर निकाल दे। कुछ देर बाद कर्मचारी ने लौटने पर बताया कि वह व्यक्ति अंधा है और सिर्फ सोहराब मोदी की आवाज सुनने के लिए थियेटर में आया था। भावप्रवण अभिनेत्री नूतन के बारे में भी एक दिलचस्प किस्सा है। उनकी फिल्म नगीना (1951) को ए सर्टिफिकेट मिला था। उस समय नूतन की उम्र लगभग पंद्रह साल की थी। चूंकि फिल्म बालिगों के लिए थी इसलिए जिस सिनेमा हाल में उनकी फिल्म प्रदर्शित की जा रही थी उसके चौकीदार ने उन्हें फिल्म देखने के लिए हाल में घुसने नहीं दिया। सीधे-सरल शब्दों में भावों को सहज अभिव्यक्ति देने की कला में माहिर शैलेन्द्र अपने गीतों के मुखडे़ सिगरेट की डिबिया पर लिखकर संगीतकारों को दिया करते थे। उस जमाने में संगीतकारों की गीतकारों से ज्यादा अहमियत हुआ करती थी और वही अपनी धुनों के लिए निर्माताओं से गीतकारों के नामों की सिफारिश किया करते थे। संगीतकार शंकर-जयकिशन ने शैलेन्द्र से वायदा किया था कि वह निर्माताओं से उनके नाम की सिफारिश करेंगे, लेकिन जब उन्होंने अपना वादा नहीं निभाया तो शैलेन्द्र ने एक पर्ची पर पंक्तियां लिखकर भेजीं छोटी सी ये दुनिया.., पहचाने रास्ते हैं.., तुम कहीं तो मिलोगे.., कभी तो मिलोगे फिर पूछेंगे हाल . इन पंक्तियों को पढ़कर शंकर-जयकिशन को अपनी भूल का अहसास हो गया। बाद में उन्होंने इस मुखडे़ पर बने गीत की संगीत रचना की, जो बेहद लोकप्रिय हुआ। खल-पात्रों से दर्शकों के दिलों में दहशत पैदा कर देने वाले अभिनेता प्राण अपने काम के प्रति बेहद समर्पित व्यक्ति थे और जिस फिल्म में वह अभिनय करते थे, उससे पूरी तरह जुड़ जाते थे। अभिनेता मनोज कुमार ने उनके बारे में एक वाकया बताया कि उपकार फिल्म की शूटिंग के दौरान उन्होंने देखा कि प्राण बेहद उदास और थके-थके से लग रहे हैं। जब उन्होंने इसकी वजह पूछी तो प्राण की आंखों में आंसू भर आए। उन्होंने बताया कि उनकी बहन का पिछली रात निधन हो गया है, लेकिन वह इसलिए कलकत्ता नहीं गए कि उनके नहीं रहने से दो निर्माताओं को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
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ज्ञान का घमंड सबसे बड़ी अज्ञानता है, एंव अपनी अज्ञानता की सीमा को जानना ही सच्चा ज्ञान है।
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