Re: चर्चा पर खर्चा।
शरीफ , शिक्षित और सज्जन के भीतर कायरता वास करती है क्योँकि हमे भले बुरे और नैतिक अनैतिक , विधिक अविधिक का ज्ञान भली भाँति बाँट दिया जाता है । आतंकवाद को उग्रवाद और अतिवाद की संज्ञा से विभूषित करने के लिये हम मानवाधिकारी मुखौटे लगा कर कहीँ न कहीँ मानवता के इन दरिन्दोँ की हिमायत कर उनकी नर्सरी को या यूँ कहेँ अब उनके विशाल दरख्तोँ को भयावह जंगल मेँ तब्दील कर रहे हैँ । पंजाब को राजनैतिक चश्मे की वजह से आतंकवाद का शिकार बनना पड़ा था । तथाकथित मानवाधिकारी दुकान चलाने वाले , बैठकोँ मेँ चाय की चुस्कियाँ ले रहे प्रबुद्धजन , पीत पत्रकारिता करने वाले पत्रकार , देश सेवा का खोमचा लगाये राजनीतिक दलोँ ने माहौल को अभूतपूर्व बनाते हुये नये शब्द नयी परिभाषायेँ भले ही गढ़ डाली लेकिन समस्या के छोटे छोटे भुनगोँ को आतंकवादी बनाने मेँ भी परोक्षतः कोई कसर नहीँ छोड़ी । नतीजा इसके पोषक की निर्मम हत्या और देश के प्रगतिचक्र की गतिहीनता के रूप मेँ सामने आया । आखिर इसके पीछे हमारे प्रशासकोँ की कमजोर इच्छाशक्ति और प्रबुद्धजन का बौद्धिक दिवालियापन नहीँ है ? जब हमारा शीर्ष निकम्मेपन से बाज नहीँ आयेगा तब कुढ़ते हुये जनसामान्य के भीतर प्रतिशोध की , प्रतिकार की भावनायेँ बलवती होकर क्या अरविन्द और अनिल के रूप मेँ सामने नहीँ आयेँगी । इनकी परिवर्तित मानसिकता के पीछे तन्त्र की नपुँसकता ही है शायद । नपुँसक किसी को जन्म तो नहीँ दे सकता । हाँ , केवल और केवल समस्या को पैदा कर सकता है और पुरुषार्थ दशा और दिशा को जन्म देकर समस्याओँ को मौत के मुँह मेँ सुलाता है । ऐसा ही हुआ था जब इच्छाशक्ति ने अँगड़ाई ली थी पुरुषार्थ जागा था और जे एफ रिबेरो के रूप मेँ आतंकवाद कुचला गया था । क्या गेँहू क्या घुन सब को पीस दिया था । आखिर घुन को भी तो साथ रहने की सजा मिलनी ही चाहिये ।
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दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो ।
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